आज का जीवन मंत्र:यात्रा को बोझ न मानें और इसे थकावट से न जोड़ें, यात्रा में सकारात्मक रहें

अर्जुन

महाभारत में अर्जुन 12 वर्षों के लिए अकेले ही वनवास के लिए निकल पड़े थे। बाद में अर्जुन के साथ ही कई साधु-संत भी आ गए थे। युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव और द्रौपदी महल में ही रह रहे थे।पांचों पांडव भाइयों ने एक नियम बनाया था कि जब कोई एक भाई द्रौपदी के साथ एकांत में होगा तो अन्य कोई भाई वहां नहीं जाएगा। एक दिन जब युधिष्ठिर और द्रौपदी एकांत में थे तो अर्जुन ने ये नियम तोड़ दिया था और वे उनके कक्ष में चले गए थे।

अर्जुन ने नियम तोड़ा तो उन्हें वन में जाना पड़ा। वे वन-वन घूम रहे थे। वे जानते थे कि मुझे इस वनवास काल में तपस्या करके अपने व्यक्तित्व को और निखारना है। अपने परिवार से बिछड़ने का दु:ख तो था, लेकिन उन्होंने सोचा कि मुझे वन में दुखी नहीं होना चाहिए। वनवास के समय में अर्जुन नए लोगों से मिलकर कुछ नया सीखना चाहते थे।

वनवास के समय में घूमते-घूमते जब वे पश्चिम दिशा में पहुंचे तो उनके आने की सूचना श्रीकृष्ण को मिल गई। श्रीकृष्ण तुरंत ही अर्जुन से मिलने पहुंचे। अर्जुन ने पूरी बात बताई तो श्रीकृष्ण ने कहा, ‘चलो रैवतक पर्वत पर चलते हैं, वहां बैठकर बातचीत करते हैं। फिर तुम मेरे साथ द्वारिका चलना।’

अर्जुन ने कहा, ‘मुझे वनवास में ही रहना है। इसके लिए मैं बाध्य हूं।’

श्रीकृष्ण बोले, ‘वन में घूमने का मतलब है, नए-नए स्थानों का ज्ञान प्राप्त करना। जब हम लंबी यात्रा में हों तो हमें मनोरंजन, मनोमंथन, अनुशासन, तप और लगातार नया सीखते रहना चाहिए। तभी उस यात्रा का लाभ मिलेगा। मैं तुम्हें द्वारिका इसीलिए ले चा रहा हूं, क्योंकि वन तो तुम देख चुके हों, अब तुम एक ऐसी नगरी देखो, जहां योग में भोग और भोग में योग मिलेगा। मैं द्वारिका के माध्यम से तुम्हें बहुत बड़ा संदेश देने जा रहा हूं।’

इसके बाद अर्जुन श्रीकृष्ण के साथ द्वारिका चले गए।

सीख

जब कभी हम यात्रा में हों तो उस यात्रा को बोझ नहीं मानना चाहिए। यात्रा को थकावट से न जोड़ें। यात्रा करते समय सकारात्मक रहें और नई-नई अच्छी बातें सीखने की कोशिश करते रहें। ऐसा करने से यात्रा आनंददायक हो जाएगी और हमारे व्यक्तित्व में निखार आएगा।

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