Saturday, July 27, 2024
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बिहार सरकार को राहत, सुप्रीम कोर्ट में जातीय जनगणना के खिलाफ सभी यचिकाएं खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जाति आधारित जनगणना कराने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को संबंधित उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने और कानून के अनुसार उचित कदम उठाने की अनुमति दी है। बता दें कि बिहार निवासी अखिलेश कुमार ने बिहार सरकार के जातीय जनगणना कराने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

याचिका में कहा गया था कि जातीय जनगणना का नोटिफिकेशन मूल भावना के खिलाफ है और यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है। याचिका में जातीय जनगणना की अधिसूचना को खारिज करने की मांग की गई थी। अखिलेश कुमार के अलावा हिंदू सेना नामक संगठन ने भी जातीय जनगणना की अधिसूचना पर रोक की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि जातिगत जनगणना कराकर बिहार सरकार देश की एकता और अखंडता को तोड़ना चाहती है। उल्लेखनीय है कि बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने बीती 6 जून को जातीय जनगणना की अधिसूचना जारी कर दी थी।

जातिगत सर्वेक्षण बिहार में शुरू हो चुका है

बिहार में 7 जनवरी से जाति आधारित सर्वेक्षण शुरू हो चुका है। राज्य में यह सर्वे करवाने की जिम्मेदारी सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट को सौंपी गई है। मोबाइल फोन ऐप के जरिए हर परिवार का डेटा डिजिटली इकट्ठा किया जा रहा है। सर्वे करने वालों को आवश्यक ट्रेनिंग दी गई है। सर्वे में परिवार के लोगों के नाम, उनकी जाति, जन्मस्थान और परिवार के सदस्यों की संख्या, आर्थिक स्थिति और सालाना आय से जुड़े सवाल पूछे जा रहे हैं।

कोई भी कागज दिखाने की जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पष्ट किया था कि सर्वे में केवल जातियों का डेटा लिया जाएगा, उपजातियों का उल्लेख नहीं होगा। राज्य सरकार ने मई 2023 तक जातीय सर्वे पूरा करने का लक्ष्य रखा है। जिला स्तर पर सर्वे की जिम्मेदारी संबंधित जिला अधिकारियों को दी गई है, जिन्हें इस काम के लिए जिलों में नोडल अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया गया है।

अखिलेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका

याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने तर्क दिया था कि जनगणना अधिनियम केवल केंद्र सरकार को जनगणना करने का अधिकार देता है, और राज्य सरकार के पास इसे स्वयं करने का कोई अधिकार नहीं है। अखिलेश कुमार ने अपनी याचिका में उन्होंने सवाल किया था। क्या किसी समुचित या विशिष्ट कानून के अभाव में जाति आधारित सर्वेक्षण के लिए अधिसूचना जारी करने की अनुमति हमारा संविधान राज्य को देता है ? क्या राज्य सरकार का जातिगत सर्वेक्षण कराने का फैसला सभी राजनीतिक दलों की सहमति से लिया गया एकसमान निर्णय है ? क्या बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण के लिए राजनीतिक दलों का कोई निर्णय सरकार पर बाध्यकारी है ? बिहार सरकार का 6 जून, 2022 का नोटिफिकेशन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का अभिराम सिंह बनाम सीडी कॉमचेन मामले में दिए गए फैसले के खिलाफ है ?

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