Tuesday, November 12, 2024
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दुनिया में हो रही प्लास्टिक रेन ! कुछ देशों में छतों पर लग रहा अंबार

प्लास्टिक रेन, कोई कोरी कल्पना नहीं है, बल्कि यह हकीकत बन चुकी है। हम इसे देख नहीं सकते, इसकी गंध नहीं सूंघ सकते लेकिन, इसे नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। भारत समेत पूरी दुनिया में प्लास्टिक रेन हो रही है। एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्वोलॉजी की इस हफ्ते छपी स्टडी के अनुसार, ये माइक्रोप्लास्टिक हैं, जिन्हें अगर एक जगह इक्ट्ठा किया जाए। तो पूरा प्लास्टिक का पहाड़ खड़ा हो जाएगा लेकिन यह नंगी आंखों से नहीं दिखेगा। अब ये समझना जरूरी है कि आखिर ये प्लास्टिक कहां से आ रहा है। क्या यह कभी पूरी तरह से बारिश का भी रूप ले सकता है ?

बता दें कि माइक्रोप्लास्टिक का साइज 5 मिलीमीटर होता है। ये गाड़ियों, कपड़ों और पुराने टायरों समेत कई चीजों में होते हैं। हमारे पास से ये वेस्टवॉटर में और वहां से कई माध्यमों से होते हुए समुद्र में पहुंच रहे हैं। समुद्र में पहुंचकर ये उसके इकोसिस्टम का हिस्सा बन रहे हैं। फिर बारिश के माध्यम से वापस धरती पर आ रहे हैं। इन्हें हम खुली आंखों से नहीं देख सकते हैं। लेकिन यूवी लाइट में आपको हवा में छोटे छोटे प्लास्टिक के कण दिखाई देंगे। हमारे घरों के अंदर ऐसे माइक्रोप्लास्टिक कहीं ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं।

छतों पर भी मिल रहे है माइक्रोप्लास्टिक

नई रिसर्च के अनुसार, ऑकलैंड के शहरी इलाकों की छतों के प्रत्येक वर्ग मीटर में हर दिन औसतन 5 हजार माइक्रोप्लास्टिक के कण गिरते हैं। अगर साल का आंकड़ा देखें तो सालभर में 74 मेट्रिक टन प्लास्टिक इक्ट्ठा हो रहा है। जो 30 लाख पानी की बॉटल्स जीतना है। ब्रिटेन में भी कुछ इसी तरह की रिसर्च की गई थी। जिसमें यह सामने आया था कि लंदन में एक दिन में औसतन 771 माइक्रोप्लास्टिक के कण गिरते हैं। ऑकलैंड की तुलना में यह 6 गुना कम है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वहां प्रदूषण ऑकलैंड की तुलना में बहुत कम है। बल्कि उस रिसर्च में प्लास्टिक के बहुत छोटे कणों में नहीं गिना गया था।

बारिश के पानी और खाने में भी मिल रहा माइक्रोप्लास्टिक

वैज्ञानिकों के अनुसार, अब बारिश के पानी, खाना, फूड चेन और समुद्र में भी प्लास्टिक के ऐसे कण शामिल हो चुके हैं। हालांकि अभी तक ये क्लियर नहीं हो पाया है कि इन माइक्रोप्लास्टिक के कणों का हमारी सेहत पर क्या असर पड़ रहा है। ये माइक्रोप्लास्टिक इतने छोटे होते हैं कि सांस लेने पर ये हमारे शरीर के अंदर चले जाते हैं।

एक रिसर्च में यह भी दावा किया गया है कि सांस के माध्यम से हर व्यक्ति के शरीर में औसतन 74 हजार प्लास्टिक के कण, एक साल में जाते हैं। इस साल की शुरुआत में हुए एक रिसर्च में इंसानी खून में भी माइक्रोप्लास्टिक के कण मिले थे।

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