रत्ना पाठक शाह ने 21वीं सदी में पढ़ी-लिखी आधुनिक महिलाओं की रूढ़िवादी रवैये पर सवाल उठाते हुए करवा चौथ जैसे व्रत को लेकर बयान क्या दिया, चारो तरफ उनकी आलोचना होने लगी | पति के लंबी उम्र की कामना में रखे जाने वाले उपवास को लेकर अपने स्टेटमेंट की वजह से विवादों में आने वाली रत्ना दिग्गज एक्ट्रेस दीना पाठक की बेटी हैं | मां दीना ने तब थियेटर में कदम रखा था जब महिलाओं के लिए स्टेज पर काम करने की पाबंदी थी | रत्ना ने अपनी मां की जिंदगी को देखते हुए जीने का तौर तरीका समझा है |
दीना पाठक ने अपने दौर में तमाम सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ा था | गुजराती थियेटर की जानी मानी कलाकार एक एक्टिविस्ट भी थीं | दीना नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वोमेन की नेशनल प्रेसिडेंट भी रहीं | कहते हैं ना कि बच्चे के लिए पहली पाठशाला मां होती है तो दीना ने ही रत्ना पाठक-सुप्रिया पाठक को जिंदगी के मायने सिखाए थे |
हिंदी सिनेमा में दादी-नानी का किरदार निभाती दीना पाठक को भला कौन भूल सकता है | सफेद बाल, बोलने का क्यूट अंदाज बरबस ही सबको अपनी तरफ खींच लेता था | गुजरात के अमरेली में 4 मार्च 1922 में पैदा हुईं दीना सादा जीवन उच्च विचार को अपनाने वाली महिला सशक्तिकरण का जीता जागता उदाहरण थीं | दीना की दो बेटियां रत्ना पाठक और सुप्रिया पाठक थीं, इन दोनों ने भी अपने मां के नक्शेकदम पर चलते हुए एक्टिंग को ही करियर बनाया |
रत्ना पाठक को पहला सबक मां दीना से ही मिला
एक बार मीडिया को दिए इंटरव्यू में रत्ना पाठक ने बताया था कि उनके लिए मां दीना ही प्रेरणा रहीं | ‘एक एक्ट्रेस के तौर पर उनकी काबिलियत का मुझ पर काफी असर रहा | वह हमारे हर काम को बड़ी ही दिलचस्पी थीं और हर छोटी-बड़ी चीजों पर ध्यान देती थीं | इतना ही नहीं वह हमारी सबसे बड़ी क्रिटिक्स थीं | वह हमें हमेशा ये समझाती थीं कि क्या सही है और क्या गलत है’ |
समाज के खिलाफ जा थियेटर का हिस्सा बनी थीं दीना पाठक
दीना पाठक की पूरी लाइफ ही महिलाओं को सीख देने वाली है | 60 साल तक लगातार फिल्मों-थियेटर में काम करने वाली दीना आखिरी बार फिल्म ‘पिंजर’ में नजर आईं थीं | 120 से अधिक फिल्मों में काम करने वाली दीना ने एक्टिंग के मंच पर तब कदम रखा था जब महिलाओं के लिए अच्छा नहीं माना जाता था , लेकिन उन्होंने किसी की परवाह नहीं की और गुजराती रंगमंच की कलाकार बन गईं |
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी
दीना पाठक गजब की क्रांतिकारी थीं | जब वह कॉलेज में पढ़ रही थी , उसी दौर में अंग्रेजों की हूकूमत के खिलाफ झंड़ा उठा लिया और देश को आजाद कराने का सपना लेकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़ी थीं | हालांकि खामियाजा भी भुगतना पड़ा , कॉलेज से निकाली गईं लेकिन जुनून कम नहीं हुआ | बाद में दूसरे कॉलेज से बी ए की डिग्री ली | दीना पाठक को अदाकारी के अलावा गुजराती रंगमंच को एक खास पहचान दिलवाने के लिए भी याद किया जाता है | फिल्मी करियर की शुरुआत भी एक गुजराती फिल्म से ही की थी | दीना ने ‘मालगुड़ी डेज’ में भी काम किया था |
महिला सशक्तिकरण का उदाहरण हैं दीना पाठक
दीना की दो बेटियां रत्ना पाठक शाह और सुप्रिया पाठक भी कमाल की एक्ट्रेस हैं | नसीरूद्दीन शाह और पंकज कपूर जैसे कलाकार दीना पाठक के दामाद हैं | पूरी जिंदगी सादगी से गुजार देने वाली दीना ने ‘उमराव जान’, ‘तमस’, ‘सत्यकाम’, ‘मोहन जोशी हाजिर हो’, ‘गोलमाल’, ‘आशा ज्योति’ जैसी फिल्मों में काम किया था | 11 अक्टूबर 2002 में मुंबई में आखिरी सांस लेने वाली महान कलाकार महिला सशक्तिकरण का जीता जागता उदाहरण रही हैं |