Sunday, December 22, 2024
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International Day of Forest , Agar Jungle Huein Kam To Badh Jayengi Maanavjaati Ki Mushkilein

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हमारे जीवन व्यापन के लिए पंचतत्व यानि हवा पानी आग आकाश वायु अग्नि जल और पृथ्वी का होना बहुत जरुरी है इन मैं से एक ही चीज़ गायब हुई तो इंसान मौत के निकट आ कर खड़ा हो जायेगा और हमारे देश में कुछ ऐसा ही हो रहा है

आपको बता दे हर वर्ष 21 मार्च का दिन विश्‍व में अंतरराष्‍ट्रीय वन दिवस के तौर पर मनाया जाता है इस दिवस को मनाने का मकसद इतना है कि विश्व भर के लोग अपने यहां पर मौजूद जंगलों के रखरखाव और उनका दायरा बढ़ाने के लिए जागरुक करना है।

प्रस्ताव भी हो चुका है पारित
International Day of Forest

आपको बता बता दे 28 नवंबर 2012 को संयुक्‍त राष्‍ट्र आम सभा में इसको लेकर एक प्रस्‍ताव पारित हुआ था। इसके बाद से ही इसका शुभारंभ भी हुआ।

इंटरनेशनल डे ऑफ फोरेस्‍ट के मौके पर इस मौके पर संयुक्‍त राष्‍ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने कहा है कि पूरी पृथ्‍वी के सामने वन क्षेत्र को बचाना सबसे बड़ी प्राथमिकता भी है और इस पर तत्‍काल कार्रवाई करनी भी जरूरी है। International Day of Forest

यदि आज हमनें इस संबंध में कुछ नहीं किया तो फिर काफी देर हो जाएगी। इसके लिए सभी देशों और सभी अंतरराष्‍ट्रीय संगठनों को तेजी से प्रयास करने होंगे।

क्या बोले लियु जेनमिन

वही बता दें यूएन डिपार्टमेंट ऑफ इकनोमिक एंड सोशल अफेयर्स के प्रमुख लियु जेनमिन ने वर्चुअल बैठक के दौरान कहा कि कोरोना काल के समय मैं ग्रीन एरिया जिसमें पार्क और जंगल शामिल हैं उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है

यह मानव जाति के लिए किसी बफर स्टॉक की तरह है क्योंकि कम होने से भविष्य में बीमारियों और महा मारियो का खतरा बढ़ जाएगा उनका कहना था कि 1 क्षेत्र की हम सभी के महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन इस पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं International Day of Forest

आगे उन्होंने बताया कि हर वर्ष 70 लाख हेक्टेयर प्राकृतिक वन क्षेत्र क्षेत्र में बदल रहा है इसमें बड़े पैमाने पर कमर्शियल खेती समय दूसरी की जा रही है इसीलिए पूरी दुनिया के लिए यह बेहद गंभीर मामला है

आपने वह मुहावरा तो सुना ही होगा “आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है” लेकिन इन आविष्कारों ने प्राकृतिक को नष्ट कर दिया है और इंसानों के लिए भी एक बहुत बड़ी समस्या खड़ा कर दी है घटते जंगलों की वजह से देश का तापमान अपनी चरम सीमा पर पहुंच रहा है International Day of Forest

ठंडी की सीमा कम होती जा रही है और गर्मी की बढ़ती जा रही है कई क्षेत्र सूखे पड़ते जा रहे हैं तो कई क्षेत्रों में बाढ़ के पानी को रोकने के लिए पौधे नहीं है घटे पेड़ों की वजह से धरातल का पानी भी कम होता जा रहा है जिसकी वजह से देश में आए दिन पीने के पानी की किल्लत रहती है

क्या कहना है विशेषज्ञों का

वह आपको बता दें विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तेजी के साथ वन क्षेत्र कम हो रहे हैं उसी तेजी के साथ जानवर इंसानों के अधिक निकट आ रहे हैं इसकी वजह से इन से होने वाली बीमारियों का प्रसाद भी बढ़ रहा है International Day of Forest

विशेषज्ञों के मुताबिक बीते कुछ वर्षों मैं जानवरों से होने वाली बीमारियों मैं वृद्धि हुई है भाई अगर जानवर अगर खूंखार निकले तो इंसान को बीमारी से पहले वो जानवार ही खा डालेगा घटते जंगल की वजह से बंदरों को भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है

जिसकी वजह से इंसानों की भी मुश्किलें बढ़ गई हैं जी हां जंगल बच्चे नहीं पेड़ काट दिए जा रहे हैं तो अब जानवर इंसानों के घर में खुश रहे हैं और उपद्रव मचा रहे हैं उन्होंने इंसानों का जीना मुहाल कर रखा है इसके लिए भी हमें सतर्क हो जाना चाहिए

और जंगल का दायरा बढ़ाना चाहिए और उसके रखरखाव में किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं करनी चाहिए वरना आने वाले समय में इंसानों का अंत बहुत ही निकट दिखाई देगा क्योंकि प्रकृति से छेड़छाड़ करना भी खुद के जीवन से भी छेड़छाड़ करने जैसा है

क्या है यूरोपीयन जियोसाइंसेज यूनियन की रिपोर्ट में
International Day of Forest

वंही यूरोपीयन जियोसाइंसेज यूनियन की रिपोर्ट बताती है कि वनस्‍पति और हरित क्षेत्र अब 500 मीटर की ऊंचाई से बढ़कर 700 मीटर की ऊंचाई पर चला गया है। International Day of Forest

रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से निचले इलाकों में बबूल समेत अन्‍य पेड़ों की अधिकता देखी जा सकती है।वंही पेड़ पौधों के माहौल में धीरे-धीरे बदलाव देखा जा रहा है। कई क्षेत्रों में नई किस्‍म के पेड़ और पौधे दिखाई देने लगे हैं।

वैज्ञानिकों को इस बात का भी डर है कि यदि इसी तरह से चलता रहा तो जहां आज घने जंगल हैं वहां भविष्‍य में घास के मैदान दिखाई देंगे। International Day of Forest

लेकिन भारत जैसे देश के लिए अभी भी यह एक बहुत बड़ा चुनौतीपूर्ण काम है क्योंकि यहां सिर्फ भेड़ चाल चली जाती है प्रकृति को तभा कर के खुद को साबित करने की कोशिश करते हैं

जो कि खुद के अंत का कारण बन रहा है कोरोना महामारी में लगे लॉकडाउन के चलते प्राकृतिक में काफी बदलाव आया था वायु प्रदूषण भी कम हुआ था लेकिन लॉकडाउन हटने के बाद फिरसे स्थिति पुराने जैसे होती जा रही है

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