Tuesday, June 24, 2025
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सालो का इंतजार हुआ ख़त्म,आखिरकार विशेष विमान से भारत पहुंचे चीते

भारत में चीतों का सालो का इंतजार खत्म हो चुका है। करीब 11 घंटे का सफर करने के बाद चीते भारत पहुंच चुके हैं। पांच मादा और तीन नर चीतों को लेकर विमान ने नामीबिया की राजधानी होसिया से उड़ान भरी। नामीबिया से आठ चीतों को लेकर विशेष विमान ग्वालियर एयरपोर्ट पहुंचा। यहां से चीतों को सेना के चिनूक हेलिकॉप्टर के जरिए मध्य प्रदेश के श्योपुर में स्थित कूनो नेशनल पार्क पहुंच गए हैं। अपने जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन्हें पार्क में बने विशेष बाड़े में छोड़ेंगे।

मॉडिफाइड बोइंग 747 विमान से लाए गए इन चीतों में रेडियो कॉलर लगे हुए हैं। कूनो का ये पालपुर राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश में स्थित है। जो कि 748 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसी राष्ट्रीय उद्यान में यह चीते रहेंगे। लेकिन देश में सैकड़ों जंगल और राष्ट्रीय उद्यान होने के बावजूद भी इन चीतों को यहीं क्यों रखा जा रहा है ? नामीबिया से लाए जा रहे 8 चीतों को यहां रखे जाने का सबसे पहला कारण तो इनके लिए यहां का मौसम अनुकूल होना है। कूनो का मौसम और वातावरण काफी हद तक नामीबिया के जंगलों जैसा ही बताया जा रहा है।

इसके अलावा इन चीतों को यहां रखने का दूसरा बड़ा कारण यह है कि इसके आसपास कोई बस्ती नहीं है। यह वन क्षेत्र छत्तीसगढ़ के कोरिया के साल जंगलों के बहुत करीब है। इन्हीं जंगलों में लगभग 70 साल पहले एशियाई मूल के चीते अंतिम बार दिखे थे।

सर्वेक्षण में सबसे उत्तम स्थान साबित हुआ कूनो

इसके अलावा वर्ष 2010 और 2012 के बीच मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में दस जगहों का सर्वेक्षण किया गया था। बाद में यह पाया गया कि कूनो चीतों को रखने के लिए सबसे उपयुक्त जगह है। भारतीय वन्यजीव संस्थान और भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट (डब्ल्यूटीआई) ने जलवायु और आबादी सहित अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए यह सर्वे किया और कूनो को सबसे उपयुक्त जगह करार दिया।

पार्क से 24 गांवों को बाहर निकाल दिया गया 

चीतों के लिए वैसे तो मनुष्यों के साथ संघर्ष की संभावना कम होती है | वे मनुष्यों का शिकार नहीं करते हैं। वे बड़े पशुओं पर भी हमला नहीं करते हैं। उच्च जनसंख्या घनत्व और खुले घास के मैदान भारत में जानवरों के लिए खतरा पैदा करते हैं। कूनो शायद देश के कुछ वन्यजीव स्थलों में से एक है, जहां सालों पहले पार्क के अंदर से लगभग 24 गांवों और उनके पालतू पशुओं को पूरी तरह से बाहर निकाल दिया गया था।

चीतों के शिकार की स्पेशल व्यवस्था

वन विभाग ने चीतों के शिकार की स्पेशल व्यवस्था की है। इनके बाड़े में चीतल हिरण, चार सींग वाला मृग, सांभर और नीलगाय के बच्चे को छोड़ा गया है। वन विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘चीता दो से तीन दिन में एक बार खाता है। इसलिए कुनो पहुंचने के बाद वे शनिवार या रविवार को शिकार कर सकते हैं।

कोरिया रिसासत के महाराज ने किया आखिरी चीते का शिकार

1947 में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में आखिरी चीते को मार दिया गया था। महाराजा रामानुज प्रताप ने गांव वालों की गुहार पर तीन चीतों को मार दिया था। इसके बाद भारत में चीतों को नहीं देखा गया। जानकारी के अनुसार महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव शिकार के बेहद शौकीन थे।

लगातार निगरानी में रहेंगे चीता

सभी चीतों की एक महीने तक निगरानी की जाएगी। इन्हें सैटेलाइट रेडियो कॉलर पहनाया गया है ताकि इनकी लोकेशन मिलती रहे। प्रत्येक चीते की निगरानी के लिए एक व्यक्ति की नियुक्ति की गई है जो इनकी गतिविधियों और अपडेट की जानकारी देगा।

चीतों के साथ भारत पहुंचे वन्यजीव विशेषज्ञ

चीतों के साथ क्रू, वन्यजीव विशेषज्ञ, डॉक्टर्स, वैज्ञानिक, नामीबिया में भारत के हाई कमिश्नर भी मध्य प्रदेश पहुंचे हैं। इसके अलावा चीता एक्सपर्ट लॉरी मार्कर अपने तीन बायोलॉजिस्ट के साथ मौजूद हैं।

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