सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा, “काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। चुनावी बॉन्ड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड तुरंत रोकने के आदेश दिये हैं। अदालत ने निर्देश जारी कर कहा, “स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) चुनावी बॉन्ड के माध्यम से अब तक किए गए योगदान के सभी विवरण 31 मार्च तक चुनाव आयोग को दें।” साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह 13 अप्रैल तक अपनी वेबसाइट पर जानकारी साझा करे।
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड ?
भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को कानूनन लागू कर दिया था। आसान भाषा में अगर हम समझें तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है। यह एक तरह का वचन पत्र है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी एसबीआई की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है।
कौन ख़रीद सकता है और कैसे दिया जाता है ?
इलेक्टोरल बॉन्ड को ऐसा कोई भी दाता खरीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है। इस योजना के तहत एसबीआई की निर्दिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं।
चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है। केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो।
इस योजना के तहत चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं। इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में कहा तक पहुंचा मामला ?
इस मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने किया। इसमें सीजेआई के साथ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं। संविधान पीठ ने 31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक पक्ष और विपक्ष दोनों ही ओर से दी गई दलीलों को सुना था। तीन दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट ने 2 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मत से सुनाया फैसला
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवी चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में सुनवाई कर रहे सभी जजों ने सर्वसम्मति से अपना फैसला सुनाया है। केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि दो अलग-अलग फैसले हैं। एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं। फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सरकार से पूछना जनता का कर्तव्य है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1) (ए) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करते हुए कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करना होगा।
एसबीआई बैंक पूरी जानकारी दे – सुप्रीम कोर्ट
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। हालांकि पीठ में दो अलग विचार रहे, लेकिन पीठ ने सर्वसम्मति से चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने का फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एसबीआई बैंक को 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड की पूरी जानकारी देने का आदेश दिया है। एसबीआई को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदे का विवरण तीन सप्ताह के अंदर चुनाव आयोग को देना होगा। शीर्ष अदालत ने एसबीआई और चुनाव आयोग को यह भी निर्देश दिया है कि वह चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी अपनी वेबसाइट पर भी पब्लिश करे।
इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्यों हो रहा था विवाद ?
इलेक्टोरल बॉन्ड पर कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) समेत चार लोगों ने याचिकाएं दाखिल की। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए गुपचुप फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है। यह सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन करती है। उनका कहना था कि इसमें शेल कंपनियों की तरफ से भी दान देने की अनुमति दी गई है। इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई पिछले साल 31 अक्टूबर को शुरू हुई थी। सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
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