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कोवैक्सिन को लेकर भारत बायोटेक के सामने एक और मुश्किल आ गई है क्योंकि अमेरिका ने कोवैक्सिन को आपातकालीन इस्तेमाल की इजाजत देने से मना कर दिया है। बता दे, भारत बायोटेक ने कोवैक्सिन के तीसरे चरण के रिजल्ट को अभी तक समझा नहीं किया है जिसे लेकर भारत में भी विपक्षी दलों द्वारा कई सवाल खड़े किए गए थे Vaccine Se Jude Faislon Par Aakhir Kyun Macha Hai Bawaal
तो वहीं अब अमेरिका द्वारा आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति नहीं दिए जाने के साथ ही कई देशों में कोवैक्सिन लेने वाले लोगों की वैक्सीनेट लोगों में नहीं गिनाती तक नहीं की जा रही है। इस प्रकार की खबरों के बाद भारत की स्वदेशी वैक्सीन इन खबरों के बाद कोवैक्सिन पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सिन खराब है? क्या वह हमें कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रखने में सक्षम नहीं है?
इस प्रकार के सवाल हैं जिनके जवाब सीधे वैक्सीन लगवाने के फैसलों से जुड़े हुए हैं
Vaccine Se Jude Faislon Par Aakhir Kyun Macha Hai Bawaal
आइए आपको बताते हैं अमेरिकी रेगुलेटर का फैसला क्या है? और कोवैक्सिन को लेकर उनकी राय
भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सिन को अमेरिका में आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी क्यों नहीं मिली ?
अमेरिका के अनुसार उनके देश में पर्याप्त लोग वैक्सीन की खुराक ले चुके हैं । कुछ लोगों को काफी हद तक हर्ड इम्यूनिटी मिल चुकी है। जिस वजह से उन्होंने अपनी पॉलिसी में बदलाव कर दिया है और वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति देने के लिए कड़े नियम भी लागू कर दिए गए हैं Vaccine Se Jude Faislon Par Aakhir Kyun Macha Hai Bawaal
इस मामले को समझने के लिए हमारे लिए यह बाहर जाना बेहद ही आवश्यक है कि अमेरिका ने पिछले वर्ष वैक्सीन के डेवलपमेंट के लिए ऑपरेशन वार्प स्पीड इनिशिएटिव के तहत 18 बिलियन डॉलर यानी भारतीय रुपयों में 1.30 लाख करोड़ रुपए खर्च किए थे।
अमेरिका ने अपने यहां फाइजर और मॉडर्ना की mRNA वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दी है। इसके साथ ही जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा निर्मित वायरल वेक्टर वैक्सीन की भी अनुमति है। इन वैक्सीन को निर्मित करने की प्रक्रिया में US FDA भी शामिल रहा है, जैसे कोवैक्सिन के निर्माण में भारत सरकार की संस्था ICMR ने सक्रिय भूमिका निभाई है।
क्या इसका अर्थ है कि कोवैक्सिन सही नहीं ?
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ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। US FDA ने भारत बायोटेक के अमेरिकी पार्टनर ऑक्युजेन को अनुमति का आवेदन देने को कहा है। लेकिन इसके लिए उसे अतिरिक्त जानकारी और डेटा की आवश्यकता होगी इतना ही नहीं क्लीनिकल ट्रायल भी करना पड़ सकता है। ताकि वैक्सीन के सुरक्षित, इम्यूनिटी पर असर और स्वीकार्य इफेक्टिवनेस की जांच किया जा सके।
इसका अर्थ सिर्फ इतना है कि अमेरिकी वैक्सीन मार्केट भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को उतारने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। इमरजेंसी इस्तेमाल की अनुमति कुछ महीनों के डेटा पर मिल जाती है, पर पूर्ण अनुमति के लिए कुछ महीने या साल का समय लगता है। क्योंकि उसे अर्जेंट नहीं समझा जाता। इसका सीधा-सीधा अर्थ बस इतना है की कोवैक्सीन को अमेरिका के बाजार में उतरने के लिए कुछ समय का इंतजार और करना पड़ेगा Vaccine Se Jude Faislon Par Aakhir Kyun Macha Hai Bawaal
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