इस साल मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी दिन शनिवार को मनाया जाएगा. सूर्य देव (Sun) धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इस दिन सूर्य देव दक्षिणायन (Dakshinayan) से उत्तरायण (Uttarayan) होते हैं. सूर्य देव 14 जनवरी को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इस समय से ही मकर संक्रांति का पुण्य काल प्रारंभ हो जाएगा, जो 03 घंटा 02 मिनट का होगा. पुण्य काल शाम 05 बजकर 45 मिनट तक रहेगा. मकर संक्रांति का महा पुण्य काल दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से प्रारंभ होगा और यह शाम 04 बजकर 28 मिनट तक रहेगा. मकर संक्रांति का महा पुण्य काल करीब पौने दो घंटे का होगा. मकर संक्रांति के दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और काला तिल, तिल के लड्डू, अनाज, गुड़, सब्जी आदि का दान करते हैं. मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्य देव का दक्षिणायन से उत्तरायण होने का क्या है? आइए जानते हैं यहां पर.
सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायन
सूर्य देव जब उत्तरायण होते हैं, तो उस समय से देवताओं का दिन प्रारंभ होता है. इस समय में शुभ कार्यों का होना ज्यादा फलित माना जाता है. दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि मानी जाती है. उत्तरायण और दक्षिणायन एक साल में दो संक्रांति हैं. सूर्य जब उत्तरायण होते हैं, तो सूर्य की तपिश बढ़ती है, गर्मी का मौसम प्रारंभ होता है.
सूर्य जब दक्षिणायन होते हैं, तो सर्दी प्रारंभ होती है. मौसम ठंडा होना शुरु हो जाता है. उत्तरायण को सकारात्मकता और दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है. उत्तरायण से दिन की अवधि लंबी और रात छोटी होने लगती है, वहीं दक्षिणायन में रात लंबी और दिन छोटे होते हैं.
उत्तरायण में सूर्य मकर राशि से प्रवेश करके कर्क राशि की ओर गति करते हैं और दक्षिणायन में सूर्य की गति कर्क राशि से मकर की ओर होती है. सूर्य जब उत्तरायण होते हैं, तो वे मकर से अगली 6 राशियों में लगभग एक एक माह रहते हैं, जिससे 6 माह का समय व्यतीत हो जाता है. ऐसे में सूर्य देव 6 माह के लिए उत्तरायण होते हैं.
जब सूर्य दक्षिणायन होते हैं तो कर्क से अगली 6 राशियों में क्रमश: एक-एक माह रहते हैं. ऐसे दक्षिणायन में सूर्य देव 6 माह तक रहते हैं. तो एक वर्ष 6 माह उत्तरायण और 6 माह दक्षिणायन से पूर्ण होता है.
पितामह भीष्म ने की थी उत्तरायण की प्रतीक्षा
उत्तरायण से जुड़ी धार्मिक मान्यता भी है. महाभारत के युद्ध के समय जब भीष्म पितामह को प्राण त्यागने होते हैं, तो वे सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते हैं. तक तक वे रणभूमि में बाणों की शैय्या पर लेटे रहते हैं. सूर्य के उत्तरायण होने पर वे अपने प्राण त्यागते हैं. ऐसी मान्यता है कि उत्तरायण में जिनके प्राण निकलते हैं, उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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