Thursday, June 19, 2025
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वक्फ संशोधन बिल पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई, केंद्र सरकार को नोटिस जारी

सुपीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। सीजेआई संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की तीन जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की। वक्फ अधिनियम के खिलाफ कई विपक्षी दलों और नेताओं द्वारा याचिकाएं दायर की गई हैं। जिनमें कांग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी, वाईएसआरसीपी, एआईएमआईएम, आदि शामिल हैं। अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे गैर सरकारी संगठनों और संगठनों ने भी इसके खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है। जानते हैं कि सुनवाई के दौरान किसने क्या-क्या दलील दी।

वफ्क बिल कानून के खिलाफ नहीं – केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने मंगलवार को कहा कि सरकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत में किसी के लिए किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पर “जबरन और एकतरफा” कब्जा करने का कोई प्रावधान न हो। वहीं, वक्फ अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह कानून “मुसलमानों और मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन करता है।

सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कही ये बातें

सीजेआई ने कहा कि हम सभी को नहीं सुन सकते। इसलिए तय कर देंगे कि कौन बहस करेगा। हम एक-एक कर नाम लेंगे। कोई भी दलील दोहराएगा नहीं। तमाम रिट याचिकाएं हैं और सभी ब्रीफ नोट तैयार करेंगे। दूसरा किन आधारों पर तर्क रखेंगे। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि मैं वरिष्ठ हूं, मुझे मौका दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी डेकोरम बनाएं रखें। सीजेआई ने कहा दो सवाल हैं- क्या मामला हाईकोर्ट भेजें… आपके तर्कों के आधार क्या हैं।

मौलाना सैयद कल्बे जवाद ने वफ्क कानून का किया विरोध

वक्फ संशोधन अधिनियम, 2024 पर शिया धर्मगुरु मौलाना सैयद कल्बे जवाद ने कहा, “हमारी सारी उम्मीदें सुप्रीम कोर्ट से हैं। सरकार सभी राज्यों में वक्त संशोधन अधिनियम लागू करने के लिए मजबूर है। यह एक काला कानून है जो सभी वक्फ संपत्तियों को नष्ट कर देगा। पहली बार ऐसा हो रहा है कि राज्य सरकारें वक्फ बिल के पक्ष में हैं। 6 राज्यों की सरकारें वक्फ बिल के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट गई हैं। इससे पता चलता है कि कितनी बड़ी साजिश चल रही है।

सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल दे रहे हैं दलील

एक याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर वकील कपिल सिब्बल दलील दे रहे हैं। कोर्ट से उन्होंने कहा कि यह अनुच्छेद मूवेबल और इमूवेबल संपत्ति जो धर्म संबंधी है। उनको संरक्षित करता है। सिब्बल ने कहा कि मैं मोटे तौर पर बता दूं कि चुनौती किस बारे में है। संसदीय कानून के माध्यम से जो करने की कोशिश की जा रही है, वह एक धर्म के आवश्यक और अभिन्न अंग में हस्तक्षेप करना है। मैं अनुच्छेद 26 का उल्लेख करता हूं और अधिनियम के कई प्रावधान अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करते हैं।

सिब्बल ने कहा कि वक्फ के मामले में पर्सनल लॉ लागू होता है और मैं ऐसे में किसी अन्य का अनुसरण क्यों करूंगा। सिब्बल ने कहा कि 2025 अधिनियम की धारा 3 (आर) का संदर्भ देते हुए- वक्फ की परिभाषा देखिए- सिब्बल ने पढ़ा। यदि मैं वक्फ स्थापित करना चाहता हूं, तो मुझे यह दिखाना होगा कि मैं 5 वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा हूं। यदि मैं मुस्लिम पैदा हुआ हूं, तो मैं ऐसा क्यों करूंगा? मेरा व्यक्तिगत कानून लागू होगा।

महिलाओं को विरासत से वंचित नहीं किया जा सकता – सिब्बल

सिब्बल ने कहा कि धारा 3(ए)(2)- वक्फ-अल-औलाद के गठन से महिलाओं को विरासत से वंचित नहीं किया जा सकता। इस बारे में कहने वाला राज्य कौन होता है? सीजेआई ने कहा कि हिंदू में भी सरकार ने कानून बनाया है। संसद ने मुसलमानों के लिए भी कानून बनाया है। सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 26 धर्मनिरपेक्ष है, सभी समुदायों पर लागू होता है।

सीजेआई ने कही ये बातें

वही सीजेआई ने कहा कि ऐसे कितने मामले होंगे? मेरी समझ से, व्याख्या आपके पक्ष में है। अगर इसे प्राचीन स्मारक घोषित किए जाने से पहले वक्फ घोषित किया गया है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह वक्फ ही रहेगा, आपको तब तक आपत्ति नहीं करनी चाहिए जब तक कि इसे संरक्षित घोषित किए जाने के बाद वक्फ घोषित नहीं किया जा सकता।

जमीयत उलेमा ए हिन्द के वकील ने दी दलील

मौलाना अरशद मदनी की जमीयत उलेमा ए हिन्द के वकील के तौर पर कपिल सिब्बल ने दलील देते हुए कहा कि कलेक्टर का प्रोसेस न्यायिक प्रक्रिया नहीं है। सिब्बल ने धारा 7(ए) का हवाला देते हुए कहा कि इसमें 20 साल लगेंगे। इस पर सीजेआई ने कहा लेकिन यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी। क्या कलेक्टर का फैसला न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है? सिब्बल ने कहा कि कानून की धारा ऐसा नहीं कहती।

तुषार मेहता ने कहा कि इसमें स्पष्ट रूप से ऐसा कहा गया है। विश्वनाथन ने कहा कि मत उलझाओ, संपत्तियां धर्मनिरपेक्ष हो सकती हैं। केवल संपत्ति का प्रशासन ही इसके लिए उत्तरदायी हो सकता है, बार-बार अनिवार्य धार्मिक प्रथा न कहें। सिब्बल ने कहा कि कृपया धारा 9 देखें। कुल सदस्य संख्या 22 है, 10 मुस्लिम होंगे। सीजेआई ने कहा कि दूसरा प्रावधान देखें। क्या इसका मतलब यह है कि पूर्व अधिकारी को छोड़कर केवल दो सदस्य ही मुस्लिम होंगे?

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा

अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि 8 लाख में से 4 वक्फ हैं, जो उपयोगकर्ता के द्वारा हैं। सीजेआई ने कहा कि क्षमा करें, हम बीच में नहीं बोलना चाहते, हमें बताया गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट वक्फ की जमीन पर बना है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि वक्फ की सभी जमीनें गलत हैं, लेकिन इसमें वास्तविक चिंता है।

वही अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अयोध्या के 118वें फैसले में कहा गया है कि यह बहुत पुरानी अवधारणा है। क्या आपने आधार हटा दिया है? 2(आर)(आई) हटा दिया गया है, लेकिन क्या आप फैसले का आधार हटा सकते हैं? व्यावहारिक रूप से देखें। अगर मैं देखूं कि संसद वक्फ है, तो आपका आधिपत्य स्वीकार नहीं करेगा, लेकिन अवधारणा खराब नहीं है।

वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने दिया ये दलील

वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने अब तर्क देना शुरू किया। हेगड़े ने कहा कि आप पंजाब से हैं, आपको पता होगा कि अमृतसर गैर-सिख नियंत्रण में था और इसके लिए पूरे अकाली दल आंदोलन की आवश्यकता थी। अन्य वकीलों ने भी कानून पर रोक लगाने की मांग की.. सीजेआई ने कहा कि बस हो गया। अब हमें मौका दीजिए।

मूल रूप से अनुच्छेद 31 को हटा दिया

सीनियर एडवोकेट राजीव शकधर ने कहा कि मूल रूप से अनुच्छेद 31 को हटा दिया गया था। वे संपत्ति के साथ कब छेड़छाड़ कर सकते हैं? नैतिकता, स्वास्थ्य आदि के अधीन, किसी को मुस्लिम के रूप में प्रमाणित करने के लिए उन्हें 5 साल की परिवीक्षा अवधि की आवश्यकता होती है।

कानून को बनाने के लिए जेपीसी का गठन था हुआ

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘अदालत इस समय उस कानून पर सुनवाई कर रही है, जिसे व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श के बाद लाया गया है। अब मैं वह सच्चाई सामने रख रहा हूं, जिसे याचिकाकर्ता नजरअंदाज कर रहे हैं। इस कानून को बनाने के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया था। इस समिति ने 38 बैठकें कीं, देश के प्रमुख शहरों का दौरा किया, विभिन्न पक्षों से परामर्श किया और प्राप्त हुए 29 लाख सुझावों पर गंभीरता से विचार किया।

धार्मिक व्यवस्था पर नहीं, बल्कि कानून पर कर रहे बात

एसजी तुषार मेहता ने कहा, ‘पहले परिभाषा खंड पर एक नज़र डालें‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ सबसे विवादास्पद है। मैं इसे स्पष्ट कर दूं।’ इस पर मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, ‘क्या आप कह रहे हैं कि यदि ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’, निर्णय द्वारा या अन्यथा स्थापित किया जाता है, तो आज उसकी कोई वैधता नहीं है?’ इस पर एसजी ने जवाब दिया कि जो प्रस्तुत किया गया है, वह सही वैधानिक योजना नहीं है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, ‘मैं हिंदू हूं, मैं एक ट्रस्ट बनाता हूं, और कहता हूं कि सभी ट्रस्टी हिंदू होंगे। प्रशासन चैरिटी कमिश्नर के पास होगा। वहीं इस्लामी कानून में, संपत्ति को धर्मार्थ उद्देश्य के लिए अल्लाह को समर्पित किया जाता है। एक वक्फ होना चाहिए जो ट्रस्ट का निपटान करता है, और वह कहेगा कि इसका संचालन मुतवल्ली द्वारा किया जाएगा।’ उन्होंने स्पष्ट किया कि वह यहां धार्मिक व्यवस्था पर नहीं, बल्कि कानून पर बात कर रहे हैं।

ट्रस्ट का उदाहरण न दिया जाए – सीजेआई 

सीजेआई ने कहा कि हम इस समय केवल ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ के विषय पर हैं। इस दौरान जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि ट्रस्ट का उदाहरण न दिया जाए, क्योंकि सबसे अधिक संभावना है कि वह हिंदू बंदोबस्ती का ही होगा, और आमतौर पर उसका प्रशासन हिंदू समुदाय ही करता है। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उत्तर दिया कि वे किसी भी तरीके से शासित हो सकते हैं, लेकिन अंततः वे वैधानिक ढांचे द्वारा ही नियंत्रित होते हैं। सीजेआई ने एसजी से कहा कि वे कोई उदाहरण प्रस्तुत करें। इस पर मेहता ने कहा, ‘ठीक है, इस पर नहीं जाते हैं।

जो वक्फ पंजीकृत हैं, वे वक्फ संपत्ति के रूप में रहेंगे

इसके बाद सीजेआई ने टिप्पणी की, ‘मेहता जी, जब हम हिंदुओं की बंदोबस्ती की बात करते हैं, तो यह स्पष्ट होना चाहिए कि यह आमतौर पर हिंदुओं की ही बंदोबस्ती होती है।’ इसके बाद मेहता ने कहा, अब हम मेरे संकलन पर आते हैं। 2025 अधिनियम से पहले जो वक्फ पंजीकृत हैं, वे वक्फ संपत्ति के रूप में बने रहेंगे। लेकिन यदि कोई यह कहता है कि वे पंजीकृत नहीं हैं, तो केवल वे संपत्तियां जो विवादों में हैं, उन्हें छोड़कर बाकी सब वक्फ संपत्ति मानी जाएंगी।’ इस पर सीजेआई ने टिप्पणी की, ‘यह वक्फ संपत्ति क्यों नहीं रहेगी ? इसे सिविल कोर्ट को तय करने दिया जाना चाहिए।

सरकारी संपत्ति को लेकर एसजी ने कहा…

सीजेआई ने कहा कि अधिकांश मामलों में जैसे कि जामा मस्जिद, उसे ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ के रूप में माना जाएगा। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रतिक्रिया दी, ‘उन्हें पंजीकरण कराने से किसने रोका ? जस्टिस विश्वनाथन ने इस पर कहा, ‘सीजेआई जो कह रहे हैं, उसका तात्पर्य यह है कि यदि धारा 3(सी) लागू होती है, और सरकार यह दावा करती है कि वह संपत्ति उसकी है, तो क्या होगा? भूमि अतिक्रमण अधिनियम के तहत कानून कहता है कि इस प्रकार के वास्तविक विवादों पर अदालत विचार करेगी।’ इस पर एसजी ने कहा, ‘माय लॉर्ड्स, कृपया मुझे अपना उत्तर पूरा करने दें। ऐसे कई फैसले हैं जो यह कहते हैं कि सरकार ट्रस्टी के रूप में ऐसी संपत्तियों को विनियमित कर सकती है।

यदि यह प्रश्न उठता है कि क्या कोई संपत्ति सरकारी है, तो कलेक्टर इसका निर्धारण करेगा। यह प्रावधान इसलिए लाया गया ताकि कोई इस पर विवाद न कर सके, क्योंकि सरकारी संपत्ति, सरकारी संपत्ति के अलावा कुछ और नहीं हो सकती।’ इस पर सीजेआई ने टिप्पणी की, ‘ऐसे में तो फिर आप पहले से की गई किसी भी घोषणा को रद्द करें जिसमें यह कहा गया हो कि संपत्ति वक्फ संपत्ति है।

कानून द्वारा स्थापित किसी चीज को खत्म करने जैसा होगा

सीजेआई ने कहा, ‘मुझे अब भी मेरा जवाब नहीं मिल पाया है।’ इस पर एसजी मेहता ने कहा, ‘अगर वह वक्फ पंजीकृत है, तो मैं उस पर हलफनामे के माध्यम से जवाब देने को तैयार हूं।’ सीजेआई ने आगे कहा, ‘यह कानून द्वारा स्थापित किसी चीज को खत्म करने जैसा होगा। आप इसे कैसे पंजीकृत करेंगे ? उप-धारा 2 पर गौर करें। जहां तक ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ का सवाल है, इसे पंजीकृत करना मुश्किल है। आपकी यह बात सही है कि इसका दुरुपयोग किया जाता है, लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि ‘उपयोगकर्ता द्वारा’ कोई भी वक्फ वास्तविक नहीं हो सकता। अगर आप इस तरह की संपत्तियों को वक्फ के रूप में चिह्नित करते हैं, तो यह गंभीर समस्या उत्पन्न करेगा। उप-धारा 2 का प्रावधान तो पूरी तरह इसके विपरीत है।

सीजेआई ने आगे टिप्पणी की, ‘कोई विधायिका (legislature) अदालत के किसी निर्णय या डिक्री को अमान्य घोषित नहीं कर सकती। आप कानून का आधार भले ही हटा सकते हैं, लेकिन किसी न्यायिक निर्णय को अप्रभावी नहीं ठहरा सकते। वह बाध्यकारी रहेगा।’ इस पर मेहता ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि ये शब्द क्यों आए हैं। कृपया उस हिस्से को अनदेखा करें। मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो खुद को मुस्लिम वक्फ बोर्ड के अधीन नहीं मानना चाहता। अगर कोई मुसलमान दान करना चाहता है, तो वह ट्रस्ट के माध्यम से भी ऐसा कर सकता है। इसके बाद एसजी और कपिल सिब्बल के बीच थोड़ी बहस शुरू हो गई, जिसे सीजेआई ने रोक दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया

सीजेआई ने पूछा, “वक्फ बाय यूजर का रजिस्ट्रेशन कैसे होगा? यह बताने वाला कहां से आएगा कि वक्फ मैंने किया है? वक्फ कानून का दुरुपयोग होता आया है, लेकिन वक्फ बाय यूजर को पूरी तरह रोक देना सही नहीं लगता। अंग्रेजों के ज़माने में प्रिवी काउंसिल ने भी वक्फ बाय यूजर को मान्यता दी थी।

इस पर एसजी तुषार मेहता ने कहा, “नया कानून मुसलमानों को खुद ट्रस्ट बनाने की अनुमति देता है और उनके लिए वक्फ को ही संपत्ति सौंपने की बाध्यता नहीं है। सेंट्रल वक्फ काउंसिल में गैर-मुसलमानों के होने से वक्फ के काम पर कोई असर नहीं पड़ता। यह काफी हद तक एक एडवाइजरी संस्था है और इसमें केंद्र की तरफ से नामित प्रतिनिधि शुरू से हैं। सेंट्रल वक्फ काउंसिल में 2 पूर्व जज भी होंगे।” इस पर सीजेआई ने कहा, “वह गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।

मैं लिखित हलफनामा दे सकता हूं – एसजी तुषार मेहता

एसजी ने जवाब दिया, “इस हिसाब से तो आप भी इस मामले को नहीं सुन सकते। सीजेआई ने तुरंत कहा, “यह तुलना मत कीजिए। बेंच पर बैठे जज इन बातों से अलग हटकर सुनवाई करते हैं। एसजी ने कहा, “मैं सिर्फ याचिकाकर्ताओं की उस दलील की व्यर्थता के बारे में समझा रहा था। 22 में से अधिकतम 2 सदस्य ही गैर-मुस्लिम होंगे। सीजेआई ने पूछा, “क्या हम इस बात को रिकॉर्ड करें? एसजी ने कहा, “मैं लिखित हलफनामा दे सकता हूं। काउंसिल में शिया और दूसरे वर्गों के मुसलमानों को भी जगह दी गई है। 2 मुस्लिम महिलाओं को भी जगह दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इनके बाद नोटिस जारी किया और केंद्र सरकार को दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। एसजी ने कहा, “हम दो हफ्ते में जवाब दाखिल कर देंगे।

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