ब्रिटिश महारानी के निधन के बाद ,कोहिनूर हीरा वापस लाने की मांग फिर शुरू

कोहिनूर हीरा
कोहिनूर हीरा

ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का निधन हो चुका है । ब्रिटेन से भारत का कोहिनूर हीरा वापस लाने की मांग ट्विटर पर भारतीयों ने एक बार फिर शुरू कर दी है। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद जहां ज्यादातर पश्चिमी देशों में शोक की लहर है। वहीं, अफ्रीका और भारत में ब्रिटिश राजघराने और ईस्ट इंडिया कंपनी के काले इतिहास को लेकर चर्चा जारी है। एलिजाबेथ द्वितीय के निधन के बाद सबसे ताजा बहस राजघराने के ताज को लेकर छिड़ी है |

जिसमें अफ्रीका से लेकर भारत तक के कई रत्न जड़े हैं। इनमें सबसे खास है ‘कोहिनूर’, जिसे भारत से ब्रिटेन ले जाया गया था | 105.6 कैरेट का यह हीरा ब्रिटिश सम्राट के क्राउन में 1937 से लगा हुआ है। मरते दम तक क्वीन इस क्राउन को पहनती रहीं। बताया जा रहा है कि अब इस आइकॉनिक क्राउन को क्वीन कैमिला को सौंप दिया जाएगा।

बीते एक हफ्ते में सोशल मीडिया से लेकर ऑनलाइन वेबसाइट्स में कोहिनूर को भारत वापस लौटाने की मांग उठने लगी है। 105 कैरेट का कोहिनूर हीरा दुनिया के सबसे बड़े कट डायमंड्स में से एक है। भारत में यह हीरा हजारों साल पहले पाया गया था और कई राजाओं के हाथ से होते हुए यह ब्रिटिश साम्राज्य के पास पहुंचा। मजेदार बात यह है कि कोहिनूर को लौटाने की मांग सिर्फ भारत ही नहीं करता, बल्कि पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान भी इस पर दावेदारी ठोक चुके हैं।

1846 में भारत से ब्रिटेन पहुंचा कोहिनूर

कोहिनूर हीरे की खोज 14वीं सदी में भारत की गोलकुंडा की खान में हुई थी। अलग-अलग सदियों में यह विभिन्न हाथों में पहुंचता रहा। वहीं भारत सरकार ने भी कई मौकों पर कोहिनूर हीरा लौटाने की मांग रखी है। साल 1947 में भी ऐसी मांग उठ चुकी है। हालांकि ब्रिटिश सरकार इस मांग को लगातार खारिज करती रही है। इतिहास में इस बात का जिक्र मिलता है कि यह कीमती हीरा 1849 में भारत से ब्रिटेन पहुंचा था। तब एंग्लो-सिख वॉर के बाद लाहौर के महाराज ने संधि के तहत इसे ब्रिटिश राज को सौंपा था।

भगवान जगन्नाथ का है कोहिनूर

भारत में सिर्फ सोशल मीडिया पर ही कोहिनूर को लौटाए जाने की मांग नहीं उठी है। बल्कि इसे लेकर ऑनलाइन याचिकाएं दायर हुई हैं। इसके अलावा कुछ संस्थानों ने सीधे सरकार से अपील की है कि वे कोहिनूर को लौटाने के लिए ब्रिटेन से सीधा संपर्क करे। इनमें पहला नाम आता है ओडिशा की एक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था श्री जगन्नाथ सेना का। पुरी की इस संस्था ने दावा किया है कि कोहिनूर पर भगवान जगन्नाथ का अधिकार है। इस संस्था ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से अपील की है कि वे कोहिनूर को पुरी के मंदिर लाने में मदद करें। इस मांग को लेकर राष्ट्रपति को एक ज्ञापन भी सौंपा जा चुका है।

भारत में सरकार और राजनीति का रुख ?

ऐसा नहीं है कि कोहिनूर को भारत लाने की मांग सोशल मीडिया पर या ऑनलाइन याचिकाओं के जरिए ही उठी है। भारत सरकार भी इस ओर कई बार प्रयास कर चुकी है। भारत ने पहली बार ब्रिटेन से कोहिनूर 1947 में आजादी मिलने के बाद ही सौंपने की मांग की थी। इसके बाद सरकार की ओर से दूसरी बार 1953 में कोहिनूर लौटाने की मांग की गई। इसी साल एलिजाबेथ-II को राजगद्दी सौंपी गई थी। हालांकि, हर बार ब्रिटेन की सरकार ने भारत की मांग ठुकरा दी। साल 2000 में भारत की तरफ से एक बार फिर ब्रिटेन से कोहिनूर लौटाने की मांग की गई।

संसद के कुछ सदस्यों ने इस बार हीरे को लौटाने के लिए ब्रिटिश सरकार को चिट्ठी लिखी। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने साफ कर दिया कि कोहिनूर के कई दावेदार हैं। ऐसे में हीरे के सही मालिक का पता नहीं लगाया जा सकता। ब्रिटेन ने कहा कि कोहिनूर 150 साल से भी ज्यादा समय से उसके गौरव का हिस्सा है।

क्या हैं कोहिनूर न लौटाने के तर्क ?

गौरतलब है कि दिलीप सिंह ने ब्रिटिश साम्राज्य को यह हीरा पहले एंग्लो-सिख युद्ध (1846) में हार के बाद दिया था। इस युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने सिख साम्राज्य के साथ लाहौर की संधि की थी। इस संधि में एक खंड में कहा गया था – कोहिनूर जिसे महाराज रणजीत सिंह ने शाह सूजा-उल-मुल्क से लिया था | उसे लाहौर के महाराज की तरफ से इंग्लैंड की महारानी को सौंपा जाना चाहिए। ब्रिटेन ने अब तक कोहिनूर न लौटाने के लिए इसी लाहौर की संधि का बहाना बनाया है। ब्रिटिश सरकार साफ कर चुकी है कि कोहिनूर का मालिकाना हक उसी का है और यह पूरी तरह वैध है।

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