Friday, October 18, 2024
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आचार्य चाणक्‍य ने बताया विद्या और सम्मान कैसे सुरक्षित रख सकते हैं, जानें 6 बातें

आचार्य चाणक्य के द्वारा लिखित नीति शास्त्र में जीवन से जुड़े अहम बिंदुओं की ओर ध्‍यान दिलाया गया है. चाणक्य नीति के माध्‍यम से आचार्य ने जीवन की कुछ समस्‍याओं के समाधन की ओर ध्‍यान दिलाया है. चाणक्‍य नीति कहती है कि खाली बैठने से अभ्यास का नाश होता है और वासना के समान दुष्कर कोई अन्‍य रोग नहीं है. इसके साथ इस नीति के जरिए आचार्य ने अपने अनुभव के जरिये यह भी बताया है कि जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना मनुष्‍य किस तरह कर सकता है और अपने जीवन में सफलता के लिए उसे किस तरह के कार्य करने चाहिए. आचार्य चाणक्य एक कुशल अर्थशास्त्री होने के साथ एक योग्य शिक्षक, एक कुशल राजनीतिज्ञ और एक चतुर कूटनीतिज्ञ भी थे. आप भी जानें चाणक्‍य नीति में इस महान विभूति द्वारा कही गई महत्‍वपूर्ण बातें-

कुछ न करने से अभ्यास का नाश होता है
आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि खाली बैठने से अभ्यास का नाश होता है. दूसरों को देखभाल करने के लिए देने से पैसा नष्ट होता है. गलत ढंग से बुवाई करने वाला किसान अपने बीजो का नाश करता है. यदि सेनापति नहीं है, तो सेना का नाश होता है.

मूर्ख बुद्धिमान से इर्ष्या करते हैं
चाणक्‍य नीति कहती है कि मूढ़ लोग बुद्धिमान लोगों से इर्ष्या करते हैं. इसी तरह गलत मार्ग पर चलने वाली औरत पवित्र स्त्री से ईर्ष्या करती है. जो सुंदर नहीं है वह सुंदर व्‍यक्ति ये ईर्ष्या करता है.

वे सब हैं माता समान
आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि इन सब को अपनी माता समान समझना चाहिए. राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी और पत्नी की मां. इनका सम्‍मान किया जाना चाहिए.

ये लोग हैं पिता के समान
चाणक्‍य नीति के अनुसार ये सब लोग आपके पिता समान हैं, जिसने आपको जन्म दिया, जिसने आपका यज्ञोपवीत संस्कार किया, जिसने आपको पढ़ाया, जिसने आपको भोजन दिया और जिसने आपको भयपूर्ण परिस्थितियों में बचाया.

विद्या अभ्यास से सुरक्षित रहती है
चाणक्‍य नीति के अनुसार अर्जित विद्या अभ्यास से सुरक्षित रहती है. इसी तरह घर की इज्जत (सम्मान) अच्छे व्यवहार से सुरक्षित रहती है. अच्छे गुणों से इज्जतदार आदमी को मान मिलता है. किसी भी व्यक्ति का गुस्सा उसकी आंखों में दिखता है.

क्रोध के समान कोई अग्नि नहीं
चाणक्‍य नीति के अनुसार वासना के समान दुष्कर कोई अन्‍य रोग नहीं होता. इसी तरह मोह के समान शत्रु का अन्‍य कोई शत्रु नहीं होता. ऐसे ही क्रोध के समान अन्‍य कोई अग्नि नहीं हो सकती.

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