Saturday, August 2, 2025
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सारे तीरथ बार-बार, गंगासागर एक बार, जानें आखिर कब और क्यों की जाती है गंगा सागर यात्रा

मकर संक्रांति के दिन किसी भी पवित्र नदी, सरोवर या समुद्र में स्नान करने का बहुत महत्व माना गया है, लेकिन इसकी शुभता और पुण्यफल तब और बढ़ जाता है, जब इस दिन गंगा सागर में स्नान करने का सौभाग्य प्राप्त होता है. गंगा सागर में स्नान-दान और पूजा का धार्मिक महत्व जानने के लिए पढ़ें ये लेख.

सनातन परंपरा में गंगा सागर (Ganga Sagar) की तीर्थ यात्रा का बहुत महत्व है. मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में जो स्नान और दान का महत्व है, वह श्रद्धालु को कहीं दूसरी जगह नहीं मिलता है. यही कारण है कि पश्चिम बंगाल के इस सबसे बड़े मेले में हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. आइए जानते हैं इस गंगा सागर मेले का धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व.

गंगा सागर की तीर्थ यात्रा के बारे में कहा जाता है कि ‘सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार.’ इस कहावत के पीछे मान्यता यह है कि जो पुण्यफल की प्राप्ति किसी श्रद्धालु को सभी तीर्थों की यात्रा और वहां पर जप-तप आदि करने पर मिलता है, वह उसे गंगा सागर की तीर्थयात्रा में एक बार में ही प्राप्त हो जाता है.

गंगासागर मेला (Ganga Sagar Mela 2022) पश्चिम बंगाल में कोलकाता के निकट हुगली नदी के तट पर ठीक उसी स्थान पर किया जाता है, जहां पर गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है. सरल शब्दों में कहें तो जहां पर गंगा और सागर का मिलन होता है, उसे गंगासागर कहते हैं.

08 जनवरी से शुरु हुआ गंगासागर मेला 16 जनवरी तक चलेगा. मकर संक्रांति के दिन यहां पर स्नान और दान का विशेष महत्व है. मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन इस पावन स्थान पर स्नान करने पर 100 अश्वमेध यज्ञ करने का पुण्य फल प्राप्त होता है.

मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में स्नान के पुण्यफल के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसके अनुसार मान्यता यह है कि जिस दिन गंगा शिव की जटा से निकलकर पृथ्वी पर बहते हुए ऋषि कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची थी, वह मकर संक्रांति का ही दिन था. मान्यता है कि इसी दिन मां गंगा कपिल मुनि के श्राप के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को सद्गति प्रदान करके सागर मिल गयी.

गंगा सागर में कपिल मुनि का प्रसिद्ध मंदिर भी है, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. मान्यता है कि यह कपिल मुनि के प्राचीन आश्रम स्थल पर बना हुआ है. मान्यता है कि कपिल मुनि के समय राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ ​करके यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ दिया. ये अश्व जिस राज्य से जाते, वहां के राजा या व्यक्ति विशेष को राजा की अधीनता स्वीकार करनी पड़ती है. उस अश्व की रक्षा के लिए राजा सगर ने अपने 60 हजार पुत्रों को भी भेजा था. एक दिन अश्व अचानक से गायब हो गया और बाद में कपिल मुनि के आश्रम में जाकर मिला. जहां पर राजा के पुत्रों ने जाकर कपिल मुनि को अपशब्द कहना शुरु किया. इससे नाराज होकर कपिल मुनि ने अपने नेत्रों के तेज से उन सभी 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया.

मान्यता है कि कपिल मुनि के श्राप के कारण उन्हें जब वर्षों तक मुक्ति नहीं मिली तो राजा सगर के पौत्र भगीरथ ने कपिल मुनि के आश्रम में जाकर माफी मांगी और अपने पुरखों की मुक्ति का उपाय पूछा. तब कपिल मुनि ने उन्हें गंगा जल से मुक्ति पाने का उपाय बताया. जिसके बाद राजा भगीरथ ने कठिन तप करके गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए.

गंगा सागर में स्नान करने के बाद श्रद्धालु भगवान सूर्य को अर्ध्य देते हैं. इस दिन गंगा और सागर के संगम में भक्तगण समुद्र देवता को नारियल और यज्ञोपवीत भेंट करते हैं. मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन यहां पर स्नान करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और श्रद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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