Wednesday, July 2, 2025
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जानिए कब है साल 2022 की पहली एकादशी, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

एकादशी के व्रत को शास्त्रों में बहुत पुण्यदायी और श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना है. हर माह में दो एकादशी होती हैं. सभी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित हैं और सभी एकादशियों के नाम और महत्व अलग अलग होते हैं. आज से नया साल शुरू हो चुका है. इस साल की पहली एकादशी 13 जनवरी 2022 को पड़ेगी.

इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है, एक पौष के महीने में और दूसरी श्रावण माह में. पौष के महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. ये व्रत संतान प्राप्ति की कामना करने वाले लोगों के लिए अत्यंत उत्तम माना गया है. जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और कथा के बारे में.

शुभ मुहूर्त
पौष पुत्रदा एकादशी 12 जनवरी की शाम 04 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और 13 जनवरी को शाम में 7 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के हिसाब से ये व्रत 13 जनवरी को ही रखा जाएगा. 14 जनवरी 2022 को व्रत का पारण किया जाएगा.

पूजा विधि
किसी भी एकादशी के व्रत के नियम दशमी तिथि से लागू हो जाते हैं और द्वादशी पर व्रत पारण तक चलते हैं. यदि आप ये व्रत रखने जा रहे हैं तो दशमी के दिन सूर्यास्त से पहले भोजन कर लें. भोजन में प्याज लहसुन वगैरह का सेवन न करें. एकादशी के दिन स्नान करके व्रत का संकल्प लें. इसके बाद नारायण के लड्डू गोपाल रूप की पूजा करें. इस दौरान भगवान को धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, फूल माला और नैवेद्य अर्पित करें और पुत्रदा एकादशी व्रत कथा पढ़ें. दिन में निराहार व्रत रहें, रात में फलाहार लें. द्वादशी के दिन स्नान के बाद पूजा आदि करके ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा दें. अपना उपवास खोलें.

व्रत का महत्व
पुत्रदा एकादशी के व्रत को नि:संतान दंपतियों के लिए उत्तम माना गया है. इस व्रत को करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है. साथ ही जो लोग इस व्रत को अपनी संतान की सलामती के लिए रखते हैं, उनके बच्चों को दीर्घायु के साथ जीवन में काफी उन्नति मिलती है. उनके बच्चे काफी तरक्की करते हैं और परिवार का नाम रोशन करते हैं.

व्रत कथा
भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था. उसकी पत्नी शैव्या थी. राजा के पास सबकुछ था, सिर्फ संतान नहीं थी. ऐसे में राजा और रानी उदास और चिंतित रहा करते थे. राजा के मन में पिंडदान की चिंता सताने लगी. संतान की चिंता में राजा का मन बहुत व्याकुल रहा करता था. इसके कारण वो राजपाठ भी ठीक से नहीं संभाल पा रहे थे. इसलिए एक दिन वो राजपाठ छोड़कर जंगल की ओर चले गए.

राजा को जंगल में पक्षी और जानवर दिखाई दिए. राजा के मन में बुरे विचार आने लगे. इसके बाद राजा दुखी होकर एक तालाब किनारे बैठ गए. तालाब के किनारे ऋषि मुनियों के आश्रम बने हुए थे. राजा आश्रम में गए और अपने मन की चिंता मुनियों को बताई. राजा की चिंता सुनकर मुनि ने कहा कि आप नियमपूर्वक पुत्रदा एकादशी का व्रत रखें. राजा ने मुनियों की बात माानकर पुत्रदा एकादशी का पूरी निष्ठा और नियम के साथ व्रत रखा और द्वादशी को इसका विधि-विधान से पारण किया. इसके फलस्वरूप रानी ने कुछ दिनों बाद गर्भ धारण कर लिया और नौ माह बाद राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई.

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