आचार्य चाणक्य की नीतियों का जितना बखान किया जाए कम ही होता है. हर एक विषय पर आचार्य को गूढ़ ज्ञान था. आचार्य चाणक्य को अर्थशास्त्र का रचयिता और प्राचीन भारतीय राजनीति के प्रकांड विद्वान कहा जाता है, जिन्होंने अपनी नीतियों के दम पर चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया था. आचार्य चाणक्य के नीति शास्त्र में मित्रों से लेकर दुश्मनी, पति पत्नी से लेकर व्यवसाय तक की नीति का जिक्र किया गया है. आचार्य चाणक्य का मानना है कि हर किसी के जीवन में ऐसे लोगों को होना चाहिए जो कि भरोसेमंद हों और उनसे किसी प्रकार का नुकसान पहुंचने की आशंका भी न हो. कई बार हमें जीवन में सांप जैसे विषैले लोग मिल जाते हैं. ऐसे में आचार्य चाणक्य ने एक श्लोक में बताया है कि किन 8 प्रकार के लोगों पर भूलकर भी कभी किसी को भरोसा नहीं करना चाहिए और ऐसे लोगों से अपने दुख को भी शेयर नहीं करना चाहिए. जानिए क्या है चाणक्य नीति का प्रसिद्ध श्लोक-
पढ़िए चाणक्य नीति का श्लोक
राजा वेश्या यमो ह्यग्निस्तकरो बालयाचको। पर दु:खं न जानन्ति अष्टमो ग्रामकंटका:।।
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि इस संसार में 8 तरह के ऐसे लोग होते हैं जो किसी भी व्यक्ति की परेशानियों को नहीं समझते हैं.आचार्य चाणक्य के मुताबिक, राजा, यमराज, अग्नि, बालक, चोर, वेश्या, याचक ये वो लोग होते हैं जिन पर दूसरों के दुख का असर नहीं होता है. इसके साथ ही ग्रामीणों को कष्ट देने वाले (गांव का कांटा) भी दूसरे के दुख से दुखी नहीं होता है.
इसके साथ ही चाणक्य जी कहते हैं कि इनके सामने कभी भी किसी को भी अपनी पीड़ा या दर्द को जाहिर नहीं करना चाहिए. क्योंकि इनको दर्द बताने का कोई असर नहीं होता है. आचार्य चाणक्य का मानना था कि इन लोगों का सामना होने पर व्यक्ति को धैर्य व समझदारी से काम लेना चाहिए, इन लोगों से बचकर रहने में ही भलाई है.
तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायास्तु मस्तके। वृश्चिकस्य विषं पुच्छे सर्वाङ्गे दुर्जने विषम् ।।
आचार्य चाणक्य के अनुसार सांप का विष उसके दांत में, मक्खी का विष उसके सिर में व बिच्छू का विष उसकी पूंछ में होता है. यानी कि सभी विषैले प्राणियों के किसी ना किसी अंग में ही विष होता है. लेकिन जो मन से बुरे होते हैं उनके सभी अंग विष से भरे होते हैं. ऐसे लोग अपना विष दूसरो पर फेंकते रहते हैं.
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