Saturday, November 1, 2025
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फिजियोथेरेपिस्ट नाम के आगे डॉक्टर न लिखें, डीजीएचएस ने जताई आपत्ति

सरकार की स्वास्थ्य नियामक संस्था डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज यानी कि डीजीएचएस ने फिजियोथेरेपी के नए पाठ्यक्रम में बदलाव की मांग की है। इसका मकसद है कि फिजियोथेरेपिस्ट ‘डॉ.’ उपाधि का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इससे मरीजों में भ्रम पैदा हो सकता है और उन्हें गुमराह किया जा सकता है।

यह मामला फरवरी 2025 में जारी ‘कॉम्पिटेंसी बेस्ड करिकुलम फॉर फिजियोथेरेपी’ से जुड़ा है। इस पाठ्यक्रम में सुझाव दिया गया था कि फिजियोथेरेपी ग्रेजुएट्स अपने नाम के आगे ‘डॉ.’ लगाकर और पीछे ‘पीटी’ (PT) शब्द जोड़कर इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन अब डीजीएचएस ने इसे गलत बताते हुए तुरंत सुधार की हिदायत दी है।

झोलाछाप डॉक्टरों को बढ़ावा मिल सकता है

डीजीएचएस स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से जुड़ी मुख्य नियामक संस्था है, जो हेल्थकेयर के मामलों पर नजर रखती है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) को लिखे एक खत में डीजीएचएस ने कहा कि इंडियन एसोसिएशन ऑफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन (IAPMR) समेत कई संगठनों ने इस प्रावधान पर कड़ी आपत्ति जताई है। खत में डीजीएचएस की डायरेक्टर जनरल डॉ. सुनीता शर्मा ने लिखा, ‘फिजियोथेरेपिस्ट मेडिकल डॉक्टर्स की तरह ट्रेनिंग नहीं लेते। इसलिए वे ‘डॉ.’ उपाधि का इस्तेमाल न करें। क्योंकि इससे मरीजों और आम लोगों को गुमराह किया जाता है और झोलाछाप डॉक्टरों को बढ़ावा मिल सकता है।

फिजियोथेरेपिस्ट डॉक्टरों के रेफरल पर ही काम करें

खत में आगे कहा गया है कि फिजियोथेरेपिस्ट डॉक्टरों के रेफरल पर ही काम करें, प्राइमरी केयर प्रोवाइडर की तरह नहीं। इंडियन एसोसिएशन ऑफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन (IAPMR) की आपत्ति का हवाला देते हुए डीजीएचएस ने कहा कि फिजियोथेरेपिस्ट बीमारियों का डायग्नोसिस करने के लिए ट्रेन नहीं होते। गलत इलाज से मरीजों की हालत बिगड़ सकती है। डीजीएचएस ने साफ किया कि डॉ. उपाधि सिर्फ रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर्स (एमबीबीएस या उसके बराबर डिग्री वाले डॉक्टरों) के लिए रिजर्व है। नर्सिंग या पैरामेडिकल स्टाफ सहित कोई और कैटेगरी इसका इस्तेमाल नहीं कर सकती।

हो सकती है कानूनी कार्रवाई – डीजीएचएस

डीजीएचएस ने चेतावनी दी कि मान्यता प्राप्त मेडिकल डिग्री के बिना ‘डॉ.’ उपाधि इस्तेमाल करना 1916 के इंडियन मेडिकल डिग्रीज एक्ट का उल्लंघन है। इससे कानूनी कार्रवाई हो सकती है, जिसमें आईएमसी (IMC) एक्ट की धारा 6 और 6ए के तहत सजा का प्रावधान है।अंत में खत में कहा गया कि पाठ्यक्रम में तुरंत बदलाव किया जाए। फिजियोथेरेपी ग्रेजुएट्स के लिए कोई और बेहतर व सम्मानजनक टाइटल सोचा जा सकता है, लेकिन ऐसा न हो कि इससे मरीजों या जनता में भ्रम हो। यह फैसला आईएमए (IMA) जैसे संगठनों की विरोध के बाद आया है।

खत में अदालतों और मेडिकल काउंसिलों के पुराने फैसलों का जिक्र किया गया है

पटना हाईकोर्ट (2003) : फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. उपाधि इस्तेमाल नहीं कर सकते।

बेंगलुरु कोर्ट (2020) : फिजियोथेरेपिस्ट और ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट डॉक्टरों की निगरानी में ही काम करें, डॉ. का इस्तेमाल न करें।

मद्रास हाईकोर्ट (2022) : इस उपाधि का दुरुपयोग रोकने का आदेश।

तमिलनाडु मेडिकल काउंसिल : कई एडवाइजरी जारी कर चेतावनी दी।

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