Tuesday, September 16, 2025
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रावण के वध से पहले प्रभु श्रीराम ने इस स्तुति से महादेव को किया था प्रसन्न

डिजिटल डेस्क : भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है. साथ ही महादेव को शास्त्रों में अत्यंत भोला बताया गया है. कहा जाता है कि कोई भी भक्त सच्चे दिल से अगर उनकी भक्ति करे, तो महादेव उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं. महादेव को प्रसन्न करने के लिए तमाम पाठ और स्तुति हैं. उन्हीं में से एक है ‘शिव रुद्राष्टक स्तोत्र’. श्रीरामचरितमानस में लिखी इस स्तोत्र को बेहद शक्तिशाली माना गया है.

इस स्तोत्र को त्वरित फलदायी माना जाता है. कहा जाता है कि पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ इस स्तुति के गान से महादेव अत्यंत प्रसन्न होते हैं. भगवान श्रीराम ने भी रावण का वध करने से पहले रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करके पूजन किया था और शिव रुद्राष्टक स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ किया था. इसके बाद ही रावण का अंत हुआ और श्रीराम विजयी हुए. यहां जानिए इस स्तुति का महत्व.

सभी संकटों को दूर करता है ये स्तोत्र
शिव रुद्राष्टक स्तोत्र को लेकर मान्यता है कि प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी तरह संकटों से मुक्ति मिलती है. वहीं महाशिवरात्रि, श्रावण, त्रयोदशी और चतुर्दशी के दिन इस स्तुति से विशेष फल की प्राप्ति होती है. इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति शत्रुओं से परेशान है और वो लगातार 7 दिनों तक कुश के आसन पर बैठकर पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ इस अद्भुत स्तुति को करे, तो महादेव निश्चित रूप से अपने भक्त की रक्षा करते हैं और उसके शत्रुओं का नाश करते हैं.

ये है शिव रुद्राष्टक स्तोत्र
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी

न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति

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