नई दिल्ली: माना जाता है कि जिस घर में सुबह-शाम प्रभु की पूजा व स्मरण किया जाता है, उस घर में हमेशा भगवान की आसीम कृपा बनी रहती है. मान्यता है कि जिस घर में दोनों समय पूरी आस्था व श्रद्धा भाव के साथ भगवान की आरती अथवा अर्चन होता है, वहां सदैव प्रभु का वास रहता है. आरती को निरांजन या निराजना भी कहा जाता है. बता दें कि आरती अत्यंत प्राचीन शब्द है, जिसके महत्व के बारे में सबसे पहले ‘स्कन्द पुराण’ (Skand Puran) में की गयी है. स्कन्द पुराण का अर्थ है, प्रभु की उपासना के बाद उनका गान अथवा बखान करना चाहिए, उनका स्मरण करना. शास्त्रों में प्रभु की भक्ति को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. सदैव प्रभु के पूजा-पाठ, अर्चन-वंदन, भजन-कीर्तन, हवन के बाद आरती की जाती है. वहीं, पूजन में जो त्रुटि रह जाती है तो उसकी क्षमा याचना अथवा पूर्ति के लिए आरती की जाती है. आज हम आपको बताएंगे भगवान की आरती करने का सही तरीका और महत्व.
आरती का महत्व
स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Vishnu) ने कहा है कि जो भक्त घी के दीपक से आरती करता है, वो कोटि कल्पों तक स्वर्गलोक में निवास करता है. वहीं, जो भी व्यक्ति मेरे समक्ष हो रही आरती के दर्शन करता है, उसे परमपद की प्राप्ति होती है. इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति कपूर से आरती करता है तो उसे अनंत में प्रवेश मिलता है.
कैसे करें आरती
हमेशा देवी-देवताओं की आरती ऐसे घुमाना चाहिए, जिससे कि ‘ऊं’ वर्ण की आकृति बनती हो.
ख्याल रखें कि हमेशा हवन-अनुष्ठान, पूजा-पाठ के आखिर में देवी-देवताओं की आरती उतारें.
हमेशा सुबह और शाम की पूजा-पाठ व आरती का समय निर्धारित करें.
आरती करते समय ध्यान रखें कि सर्वप्रथम चरणों की चार बार, नाभि की दो बार, मुख की एक बार आरती करने के बाद पुनः समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए.
आरती के बाद जल को भगवान के चारों ओर घुमा कर उनके चरणों में निवेदन करना चाहिए.
आरती के उपरान्त थाल में रखे हुए पुष्प को समर्पित करना चाहिए.
इसके बाद कुमकुम का तिलक लगाना चाहिए.
एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि आरती लेने वाले को थाल में कुछ दक्षिणा जरूर रखनी चाहिए.