21वीं सदी भारत की है और भारत विश्व गुरू बनने की ओर अग्रसर है | भारत सरकार भी डिजिटल इण्डिया का बखान करते नहीं थकती बल्कि करोड़ों रूपये के विज्ञापन भी इसी बात पर दिये जाते हैं कि भारत अब डिजीटल बन गया है।
अरे हजूर काहे का डिजीटल – भारत की स्थिति, कद और डिजीटलाइजेशन केवल भारतीय मीडिया को दिखता है या बीजेपी नेताओं को पता होता है या थोड़ा बहुत अंधभक्तों को महसूस होता होगा परन्तु यह सच्चाई नहीं, कोई देश डिजीटल तब होता है कि जब उसके देश में गरीबी और भुखमरी पूरी तरह से खत्म हो जाती है |अगर बात की जाए भारत की तो यहां भुखमरी का यह आलम है कि भारत इस समय गरीब और भूखे लोगों की श्रेणी में 105वें स्थान पर पहुंच गया है | जबकि 2014 से पहले 55वें स्थान पर हुआ करता था और उसी के बाद से लगातार पिछड़ता चला जा रहा है परन्तु हमारे देश के लोगो के लिये यह कोई खबर हीं नहीं है और न ही सरकार का इस ओर ध्यान है।
पाकिस्तान , बांग्लादेश और नेपाल से पिछड़ा भारत
यहीं नहीं वह पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों से भी पिछड़ गया है। जिस देश में एक प्रधानमंत्री की छवि को अच्छा बनाने के लिये सैकड़ों करोड़ रूपए विज्ञापन पर खर्च किये जाते हैं उसी देश में तकरीबन 6 करोड़ से ज्यादा गरीब भूखे सोने पर मजबूर हैं। यहाँ फर्क तो सिर्फ धर्म की राजनीति परवान चढ़ रही है हम हिन्दू-मुस्लिम के पेंच में फंसे हुये है और दुनिया चांद पर प्लाटिंग करने की तैयारी कर चुकी है। हम रोज़ यह दावे ठोकते हैं कि किस मन्दिर को कब मस्जिद बनाया गया था और हमारी सरकारें, अदालतें, कचहरियां और लोग सब इसे साबित करने में जुट जाते हैं कि मन्दिर है या मस्जिद।
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हमें फर्क नहीं पड़ता कि भारत की स्थिति पूरी दुनिया के सामने कैसे देखी जा रही है हमारे देश के बच्चे रोज भूखे सोने को मजबूर हैं और हम दुनिया में सबसे ज्यादा करोड़पति लोगों का देश बन गये हैं। जिस देशं के व्यापारी दुनिया के अमीरों की श्रेणी में टाॅप 10 में शुमार किये जाते हैं उसी देश के 6 करोड़ से ज्यादा बच्चों को खाने के लिये आज भी अनाज नहीं मिल पाता है जबकि सरकार का दावा है कि वह 80 करोड़ गरीबों को प्रतिमाह अनाज उपलब्ध कराती है लेकिन प्रश्न यह है कि जिनके पास राशन कार्ड ही नहीं उनको कैसे राशन उपलब्ध कराया जा सकता है।
कम पैसे में अनाज की जगह मिलेगा खाना ?
यह भूखे गरीब परिवार जिनका स्तर अगर सरकार चाहे तो बहुत आसानी से सुधारा जा सकता है प्रधानमंत्री योजना के तहत फ्री में या कम पैसे में अनाज के स्थान पर सीधे खाना मुहैया कराया जा सकता है जैसे तमिलनाडु में जयललिता किया करती थी या वैसा ही कुछ और कदम उठाया जा सकता है, पर ऐसा हो तो तभी सकता है जब सरकार की मंशा हो या उसकी निगाह इन परिवार की तरफ जाए। सरकार हजारों करोड़ रूपये अपने देश के बड़े उद्योगपतियों के कर्ज के तो माफ कर देती है परन्तु इन गरीबोें के लिये सरकार के पास शायद धन नहीं।
यहां हजारों करोड़ रूपये के विज्ञापन दिये जा सकते हैं, धार्मिक स्थ्लों पर करोड़ो का चंदा इक्ठ्ठा किया जा सकता है, लेकिन गरीब के पेट में अनाज के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सकता। यह सच है कि यह गरीबी न कल मिटी थी न आगे मिटेगी लेकिन इसको कम तो किया ही जा सकता है और सुधार हो तो काश ऐसा हो सकता था कि 2014 में जो देश हंगर इण्डेक्स में 55वें स्थान पर था वह कम होकर 20 या 25वें स्थान पर पहुंचता और बेहतर था कि शून्य पर पहुंच गया होता लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि 105 स्थान पर पहुंच गया, यह विषय शर्म का है गर्व का नहीं……
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