एस्ट्रो डेस्क : हिंदू धर्म से जुड़े तकरीबन सभी लोगों के घर में एक छोटा सा मंदिर या फिर कहें पूजा का स्थान होता है. जहां पर व्यक्ति प्रतिदिन अपने आराध्य की साधना-आराधना करके सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगता है, लेकिन कई बार जाने-अनजाने उससे पूजा में कुछेक गलतियां हो जाती हैं, जिसके चलते उसकी प्रार्थना सफल नहीं हो पाती है. दरअसल, ईश्वर की पूजा के भी अपने कुछ नियम होते हैं, जिनका पालन करने पर ही हमारी पूजा संपूर्ण और सफल होती है. आइए ईश्वर की पूजा करते समय जिन बातों का हमें विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए, उसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
ईश्वर की साधना-आराधना हमेशा स्नान-ध्यान आदि करने के बाद पवित्र मन से ही करना चाहिए. ईश्वर की पूजा करते समय किसी भी प्रकार का क्रोध, ईष्र्या आदि नहीं करना चाहिए.
ईश्वर की पूजा में हमेशा खिले हुए फूल ही चढ़ाना चाहिए. पूजा में भूलकर भी कलियां न चढ़ाएं. जब भी देवी-देवता को फूल चढ़ाना हो तो दाएं हाथ की अनामिका और अंगूठे की मदद से चढ़ाना चाहिए. इसी प्रकार अनामिका अंगुली से ही देवी-देवताओं को तिलक लगाना चाहिए. ईश्वर की पूजा में फूल का खिला हुआ भाग हमेशा उपर की तरफ रखते हुए चढ़ाएं.
ईश्वर की पूजा में यदि आप संस्कृत में मंत्र न पढ़ पाएं तो आप हिंदी में उसका अर्थ पढ़कर अपनी प्रार्थना कर सकते हैं. यदि आप हिंदी या अपनी किसी मातृभाषा में भी न पढ़ पाएं तो श्रद्धा भाव से बगैर मंत्र के जो कुछ भी पत्र, पुष्प आदि हो उसे अपने आराध्य को अर्पित करना चाहिए. ईश्वर की पूजा में हमेशा अपने आराध्य की पसंद का प्रसाद चढ़ाना चाहिए.
सनातन पंरपरा में पंचदेव की पूजा का बहुत महत्व है. ऐसे में प्रतिदिन प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य, श्री गणेशजी, देवी दुर्गा, भगवान शिव एवं श्री विष्णु भगवान की पूजा अवश्य करें.
प्रतिदिन की जाने वाली पूजा में देवी-देवताओं की परिक्रमा के भी नियम हैं. जैसे देवी दुर्गा की एक, सूर्यदेव की सात, गणपति की तीन, भगवान विष्णु की चार और शिवलिंग की सिर्फ आधी परिक्रमा ही करनी चाहिए.
ईश्वर की साधना हमेशा उचित आसान में बैठकर ही करना चाहिए और पूजा के पश्चात् उस आसन के नीचे दो बूंद जल गिराकर उसे अपने माथे पर लगाना चाहिए. यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो आपकी पूजा का फल देवराज इंद्र को चला जाता है.
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ईश्वर की पूजा आरती के बगैर अधूरी मानी जाती है, ऐसे में आप हमेशा अपने आराध्य की आरती खड़े होकर करें. आरती को दाएं हाथ से करते हुए सबसे पहले अपने आराध्य के चरणों की तरफ चार बार, इसके बाद नाभि की तरफ दो बार और अंत में एक बार मुख की तरफ घुमाएं. ऐसा कुल सात बार करें. आरती करने के बाद उस पर से जल फेर दें और प्रसाद स्वरूप सभी लोगों पर छिड़कें. आरती के बाद हमेशा दोनों हाथ से उसे ग्रहण करें.