उत्तर प्रदेश में होने वाले निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब प्रदेश में निकाय चुनाव जल्द ही कराए जा सकेंगे। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि ओबीसी आरक्षण के बिना प्रदेश में निकाय चुनाव संपन्न कराए जाएं। यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सुनाया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सरकार ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला अपनाए।
इस ‘ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला’ के तहत राज्य सरकार कमीशन बनाए जो पिछड़ा वर्ग पर रिपोर्ट दे। इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग की आर्थिक-शैक्षणिक स्थिति देखी जाए और रिपोर्ट के आधार पर तय हो कि आरक्षण की जरूरत है या नहीं ?
सरकार ने 5 दिसंबर को जारी किया था ड्राफ्ट
लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार द्वारा 5 दिसंबर को जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को ख़ारिज करते हुए कहा कि निकाय चुनावों को बिना ओबीसी आरक्षण के ही संपन्न कराए जाएं। यह निर्णय न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर दाखिल 93 याचिकाओं पर एक साथ पारित किया है।
ओबीसी आरक्षित सभी सीटें हो जाएंगी जनरल
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद ओबीसी जातिवर्ग के लिए आरक्षित सभी सीटें अब जनरल मानी जाएंगी। मतलब कि अब इन सीटों पर कोई भी व्यक्ति अपनी दावेदारी ठोकते हुए चुनाव लड़ सकता है। हालांकि कोर्ट ने एससी और एसटी आरक्षक के साथ चुनाव कराने की बात कही है। अब कोर्ट के इस फैसले के बाद संभावना है कि जनवरी में चुनाव हो सकते हैं। हालांकि अगर राज्य सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती है। तब ही ऐसा संभव होगा।
पिछड़े वर्ग के हितों से नहीं करेंगे समझौता – के पी मौर्या
वहीं कोर्ट के इस फैसले के बाद प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का बड़ा बयान सामने आया है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन करने के बाद ही। विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। परंतु पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
रैपिड सर्वे और ट्रिपल टेस्ट में अंतर
ओबीसी आरक्षण के लिए सरकार रैपिड सर्वे का हवाला दे रही थी। इस सर्वे में प्रशासन की देखरेख में नगर निकायों का वार्ड के हिसाब से ओबीसी वर्ग की गिनती कराई जाती है। इसके आधार पर ही यह निर्धारित किया जाता है कि यह वार्ड ओबीसी आरक्षित होगा या नहीं। वहीं ट्रिपल टेस्ट में आरक्षण का निर्धारण करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाता है। जो सर्वे कर आरक्षण को प्रस्तावित करेगा। दूसरे चरण में ओबीसी की संख्या का परीक्षण होगा और तीसरे चरण में शासन स्तर पर सत्यापन कराया जाता है।
फैसले में 93 याचिकाओं को एक साथ पारित किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ की ओर से आए फैसले में 93 याचिकाओं को एक साथ पारित किया गया है। कोर्ट ने निकाय चुनाव जल्द से जल्द कराने के भी आदेश दिए हैं। हालांकि यूपी सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जा सकती है। यदि सरकार सुप्रीम कोर्ट जाती है तो चुनाव अप्रैल-मई 2023 तक टल भी सकते हैं। यदि यही फैसला सरकार के पक्ष में आया होता तो चुनाव तुरंत होने की संभावना ज्यादा थी।
बढ़ेंगी भाजपा सरकार की मुश्किलें
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ की ओर से सरकार को बड़ा झटका दिया गया है। अब सरकार सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी। यदि वहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत ही ट्रिपल टेस्ट कराकर ओबीसी आरक्षण निर्धारित करने का आदेश दिया गया तो सरकार की मुसीबत बढ़ जाएगी। ऐसी स्थिति में भाजपा ओबीसी आरक्षण को नजरअंदाज कर चुनाव नहीं करा सकती। यदि ऐसा किया गया तो निकाय चुनाव के साथ-साथ आगामी लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। भाजपा सरकार चुनाव तो जल्दी कराना चाहती है। लेकिन बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराना उनके लिए खतरा साबित हो सकता है।
समाजवादी पार्टी पर भी होगा इसका असर
निकाय चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही माना जा रहा है। ऐसे में निकाय चुनाव टाले जाते हैं तो भाजपा सरकार के साथ-साथ समाजवादी पार्टी पर भी असर पड़ेगा। यदि चुनाव अप्रैल-मई तक आगे बढ़ते हैं तो। यह दोनों ही प्रमुख दलों के लिए मुसीबत वाला होगा। यदि चुनाव ज्यादा देर से होते हैं तो लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर भी असर डाल सकता है।
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