भारत और पाकिस्तान विवाद के बीच देश ने देख लिया है कौन हमारा दोस्त है और कौन हमारा दुश्मन है। जिस तुर्किए में भूकंप से तबाही मचने पर भारत ने दिल खोलकर मदद की थी, उसी ने पीठ में खंजर घोंपा है। यही वजह है कि देश में तुर्किए और उसके सामानों का बायकॉट किया जा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्किए पाकिस्तान की मदद करने के बाद बेनकाब हो चुका है। लेकिन अमेरिका भारत के दुश्मन से दोस्ताना व्यवहार निभा रहा है।
अमेरिका तुर्किए को मध्यम दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल बेच रहा है। अमेरिका का विदेश विभाग तुर्किए को 225 मिलियन डॉलर की मिसाइलें बेच रहा है। वहीं अब भारत और अमेरिका के रिश्ते भी कुछ खास ठीक नहीं हैं। ऐसे में अगर भारत या कोई अन्य देश तुर्किए पर हमला करने की सोचता है तो क्या वो हमला अमेरिका पर भी माना जाएगा, चलिए जानते है ऐसा क्यों है।
राष्ट्रपति ट्रंप के रवैये की हो रही आलोचना
दरअसल ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जिस तरीके से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर का क्रेडिट लेने की कोशिश की। उसके बाद से उनके रवैये की जमकर आलोचना की जा रही है। क्योंकि विदेश मंत्रालय ने यह साफ कर दिया है कि भारत और पाकिस्तान में संघर्ष विराम का समझौता सीधे डीजीएमओ (DGMO) के स्तर पर हुआ है और वो भी पाकिस्तान की तरफ से अनुरोध करने पर। इसका कारण यह था कि भारतीय वायुसेना की कार्रवाई बहुत प्रभावी थी, इसीलिए पाकिस्तान को घुटनों पर आना पड़ा।
तुर्किए और अमेरिका का रिश्ता क्या कहलाता है
वहीं तुर्किए और अमेरिका के भले ही सीधे संबंध न हों, लेकिन दोनों देश नाटो के सदस्य हैं। नाटो का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य साधनों द्वारा मित्र राष्ट्रों की स्वतंत्रता और सुरक्षा की रक्षा करना है। नाटो ट्रान्साटलांटिक समुदाय का प्रमुख सुरक्षा साधन है और इसके कॉमन लोकतांत्रिक मूल्यों की अभिव्यक्ति है।
नाटो के तीन मुख्य कार्य हैं, पहला है सामूहिक रक्षा करना, दूसरा है संकट निवारण और प्रबंधन, और तीसरा सहकारी सुरक्षा है। ये कार्य उत्तरी अटलांटिक संधि के बाद, गठबंधन द्वारा अपनी नीतियों, सैन्य क्षमताओं और परिचालन कार्रवाई को परिभाषित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले प्रमुख दस्तावेज 2022 की रणनीतिक अवधारणा में निहित हैं।
अमेरिका क्यों कर रहा तुर्किए की मदद
ऐसे में अमेरका ने जो तुर्किए को 304 मिलियन डॉलर मिसाइलों की बिक्री को मंजूरी दी है। यह कदम नाटो सहयोगी व्यापार और रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए उठाया है। एक तरफ ट्रंप भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर में अपनी दखलअंदाजी का झूठ बता रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ तुर्किए को मदद का हाथ बढ़ा रहे हैं। दो दिन पहले तो ट्रंप ने उस आतंकी से भी हाथ मिलाया था, जिस पर कभी अमेरिका ने करोड़ों का इनाम रखा था और जेल भी भेजा था।
लेकिन जिस तरीके से अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ यूटर्न लिया है, ये भारत के लिए खतरा हो सकता है। पूरी दुनिया जानती है कि ट्रंप का रवैया कैसा है, वो क्रेडिट लेने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। भले ही वो काम उन्होंने किया हो या न किया हो। यही उन्होंने भारत-पाकिस्तान सीजफायर के दौरान भी करने की कोशिश की।
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