Friday, June 27, 2025
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बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पंहुचा परदेशी बाबा ट्रस्ट

महाराष्ट्र के थाने की एक दरगाह को हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सात दिनों तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। परदेशी बाबा ट्रस्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसमें दरगाह को हटाए जाने की अनुमति दी गई थी। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला 23 साल से परदेशी बाबा ट्रस्ट और एक प्राइवेट कंपनी के बीच चल रहा है। यह कंपनी जमीन पर मालिकाना हक होने का दावा करती है।

कंपनी का कहना है कि दरगाह के 160 स्कवायर फीट के क्षेत्र को बढ़ाकर 17,160 स्कवायर फीट तक फैला दिया गया और यह जमीन कंपनी की है। इस निर्माण के लिए थाने म्युनिसिपिल कॉर्पोरेशन की भी अनुमति नहीं लगी गई। जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस बी वराले की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी।

हाईकोर्ट ने परदेशी बाबा ट्रस्ट को लगाई फटकार

बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस निर्माण के खिलाफ दाखिल रिट पेटीशन पर सुनवाई करते हुए अनधिकृत हिस्से को तोड़ने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस तरह दरगाह के पास निर्माण करने के लिए परदेशी बाबा ट्रस्ट को फटकार लगाई और थाने म्युनिसिपिल कॉर्पोरेशन पर भी नाराजगी जताई कि उसने मामले से जुड़े हलफनामे में तथ्यों को लेकर स्पष्ट जानकारी नहीं दी।

ट्रस्ट की तरफ से सीनियर एडवोकेट हुफेजा अहमदी ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि कोर्ट ने इस पर ध्यान नहीं दिया कि अप्रैल, 2025 में ही निर्माण को लेकर दाखिल सिविल मुकदमा खारिज कर दिया गया था। उनका यह भी कहना है कि विवाद 3,600 स्कवायर फीट में किए गए निर्माण को लेकर था। लेकिन हाईकोर्ट का फोकस पूरे 17,610 स्कवायर फीट के निर्माण पर था।

ट्रस्ट ने धर्म की आड़ में जमीन पर किया अतिक्रमण

जमीन पर मालिकाना हक बताने वाली कंपनी की तरफ से सीनियर एडवोकेट माधवी दीवान पेश हुईं। उन्होंने कहा कि ट्रस्ट ने धर्म की आड़ में जमीन पर अतिक्रमण किया। एडवोकेट माधवी ने म्युनिसिपल रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए पूरे धार्मिक निर्माण को गैरकानूनी ठहराया और कहा कि ट्रस्ट ने ध्वस्त किए गए ढांचे के कुछ हिस्से को फिर से बना लिया है और यह दिखाता है कि वह लगातार कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता

एडवोकेट माधवी ने याचिकाकर्ता ट्रस्ट से सवाल किया कि उसे किसने 17,000 स्कवायर फीट की पब्लिक लैंड पर निर्माण की इजाजत दी है। उन्होंने सवाल किया कि दरगाह के लिए कितनी जमीन अलॉट की गई थी। यह एक प्राइवेट लैंड है, पब्लिक नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद प्रक्रियागत अनियमितताओं और तथ्यों को लेकर स्पष्टता नहीं होने पर चिंता जताई। इस बात पर भी अस्पष्टता है कि क्या 10 मार्च, 2025 के विध्वंस के आदेश का पूरी तरह से पालन किया गया। जस्टिस मेहता ने कहा कि मुकदमे के खारिज होने की बात का खुलासा न करना निराशाजनक है और अगर हाईकोर्ट को यह बात पता होती तो वह अलग निष्कर्ष पर पहुंच सकता था।

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में इस बिंदू को उठाने की ट्रस्ट को अनुमति दी और सात दिनों के लिए विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट को तथ्य बताएं ताकि वह इस पर विचार करे।

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