होली (Holi) को हिंदू धर्म के सबसे बड़े त्योहारों में से एक माना जाता है. हर साल होली का ये पर्व मनाने से पहले फाल्गुन मास की पूर्णिमा (Phalguna Purnima) तिथि को होलिका दहन किया जाता है. इसके बाद चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि पर होली का त्योहार मनाया जाता है. इस बार होलिका दहन (Holika Dahan) 17 मार्च को गुरुवार के दिन किया जाएगा. 18 मार्च को रंगों की होली खेली जाएगी. होलिका दहन के लिए काफी दिन पहले से लकड़ियों का इंतजाम कर लिया जाता है. लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुछ पेड़ ऐसे होते हैं, जिन्हें हिंदू धर्म में काफी पूज्यनीय माना जाता है, उन पेड़ों की लकड़ियों को होलिका दहन के लिए प्रयोग में नहीं लेना चाहिए. यहां जानिए वो कौन से पेड़ हैं !
इन पेड़ों की लकड़ियां न जलाएं
पीपल, बरगद, शमी, आंवला, नीम, आम, केला और बेल की लकड़ियों का प्रयोग होलिका दहन के दौरान कभी नहीं किया जाना चाहिए. हिंदू धर्म में इन पेड़ों को काफी पवित्र और पूज्यनीय माना गया है. इनकी पूजा की जाती है और इनकी लकड़ियों का प्रयोग यज्ञ, अनुष्ठान आदि शुभ कार्यों के लिए किया जाता है. होलिका दहन को जलते हुए शरीर का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस कार्य में इन लकड़ियों का उपयोग नहीं करना चाहिए.
इन लकड़ियों का करें इस्तेमाल
होलिका दहन के दौरान आप चाहें तो गूलर और अरंडी के पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल कर सकते हैं. बसंत के मौसम में गूलर के पेड़ की टहनियां सूख कर अपने आप गिर जाती हैं, साथ ही इसकी लकड़ियां जलती भी जल्दी हैं. ऐसे में आपको होलिका दहन के लिए किसी भी हरे भरे पेड़ की लकड़ी को काटने की जरूरत नहीं होती. आप खरपतवार या किसी अन्य पेड़ की सूखी लकड़ी जो पहले से टूटी पड़ी हो, उसका भी इस्तेमाल होलिका दहन के लिए कर सकते हैं. इसके अलावा गोबर के उपलों से भी होलिका दहन किया जा सकता है.
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इसलिए करते हैं होलिका दहन
होलिका दहन के पीछे भक्त प्रहलाद की भक्ति की कथा छिपी है, जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर देखा जाता है. असुर राज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन हिरण्यकश्यप को यह पसंद नहीं था. वो अपने पुत्र को नारायण की भक्ति से दूर रखना चाहता था, लेकिन प्रहलाद नहीं माना. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन वो असफल रहा. इसके बाद उसने ये कार्य अपनी बहन होलिका को सौंपा जिसे वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को नहीं जला सकती. होलिका प्रहलाद को जान से मारने के इरादे से अग्नि में बैठी, लेकिन स्वयं जलकर खाक हो गई, पर प्रहलाद का कुछ नहीं बिगड़ा. इसे बुराई का अंत और भक्ति की जीत माना गया. जिस दिन होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी थी, उस दिन पूर्णिमा तिथि थी. तब से हर साल पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन किया जाता है.