लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के तीसरे चरण में 20 फरवरी को 59 विधानसभा सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इस चरण में यूपी, पश्चिमी यूपी, अवध और बुंदेलखंड के तीन क्षेत्रों में मतदान होगा. इसमें (तीसरे चरण का मतदान) पश्चिमी यूपी के पांच जिलों फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कासगंज और हाथरस की 19 विधानसभा सीटें हैं. इसके अलावा अवध क्षेत्र के कानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज और इटावा की 27 विधानसभा सीटों और बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर और महोबा जिले की 13 विधानसभा सीटों पर मतदान होना है.समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए यह चरण सबसे अहम माना जा रहा है, जिससे उनकी सत्ता में वापसी का रास्ता साफ हो सकता है. साथ ही यह चरण भाजपा के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि पहले दो चरणों में काफी कठिनाइयों का सामना कर रही भाजपा के लिए इस चरण में जनता का रवैया जीवनरक्षक कार्य का काम कर सकता है।
पिछली बार बीजेपी का शानदार प्रदर्शन
साल 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने यहां की 59 में से 49 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, समाजवादी पार्टी के हिस्से में 8 सीटें आईं, जबकि कांग्रेस और बसपा को एक-एक सीट ही मिली. ऐसे में जहां बीजेपी अपने पिछले स्ट्राइक रेट में सुधार की उम्मीद कर रही है, वहीं समाजवादी पार्टी भी इस चरण में बेहतरीन प्रदर्शन का दावा कर रही है.
हालांकि इस चरण के 16 जिलों में से 9 जिले यादव बहुल हैं. इसलिए इसे यादवलैंड भी कहा जाता है, जिसमें फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा और एटा जैसे जिले शामिल हैं। हालांकि 2017 के चुनाव में यादव के दबदबे वाली 30 सीटों में से समाजवादी बस सिर्फ 6 सीटें ही जीत पाई थी. सपा के इस सबसे खराब प्रदर्शन की वजह यादव विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण बताया जा रहा है.
परिवारवाद और ध्रुवीकरण के दम पर बीजेपी
2017 के विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व की लहर पर सवार बीजेपी को इसका साफ फायदा नजर आया था. यही वजह है कि इस बार भी भगवा पार्टी जोर-जोर से मुस्लिम और दंगा जैसे शब्द उछाल रही है। इसके अलावा हाल के दिनों में हिजाब को लेकर काफी शोर है। वहीं, यादव बहुल इलाकों की जरूरतें पूरी करने के लिए बीजेपी भी परिवारवाद का मुद्दा जोर-शोर से उठा रही है.
अखिलेश हाथरस से
वहीं अखिलेश हाथरस में एक दलित लड़की के साथ रेप और उसकी मौत और फिर प्रशासनिक तंत्र की कथित बदसलूकी का मामला उठा रहे हैं. इसके अलावा इस चरण में कानपुर में भी वोटिंग चल रही है और इसके लिए अखिलेश की पार्टी बिकरू कांड या यूं कहें कि विकास दुबे के पुलिस एनकाउंटर और उनके सहयोगी अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे को जेल भेजे जाने का मुद्दा जोर-शोर से उठा रही है. इन दोनों मुद्दों के जरिए दलित और ब्राह्मण अपने साथ वोट बैंक लाने की कोशिश कर रहे हैं.
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ऐसे में तीसरे चरण के चुनाव में देखना होगा कि क्या सपा इन जिलों में जातिगत समीकरण को अपनाकर अपना खोया वर्चस्व हासिल कर पाती है या फिर ध्रुवीकरण के मुद्दे पर सवार भाजपा एक बार फिर अपने विजय रथ के साथ लखनऊ पहुंचेगी. इसका जवाब 10 मार्च को यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा.

