भगवान विष्णु को तस्वीर में काल रूपी शेषनाग पर विश्राम की मुद्रा में लेटे दर्शाया गया है. ऐसे में तमाम लोगों के मन में सवाल उठता है कि जिस पर संसार के संचालन की इतनी बड़ी जिम्मेदारी हो, वो कालरूपी नाग पर इतनी शांत मुद्रा में कैसे विश्राम कर सकता है ? यहां जानिए इसके बारे में.
हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी देवताओं का जिक्र है. सभी के चित्र अलग अलग तरह से बनाए गए हैं, जिससे लोग पहचान पाते हैं कि ये कौन से देवता है. भगवान विष्णु के चित्र में उन्हें क्षीर सागर में शेष नाग की शैय्या पर लेटा दिखाया जाता है. इस चित्र में श्री विष्णु बिल्कुल शांत मुद्रा में आराम से लेटे हैं. भगवान विष्णु को शास्त्रों में जगत का पालनहार कहा गया है. उन्हें जगत पिता के नाम से भी जाना जाता है.
ऐसे में कई बार जेहन में सवाल आता है कि जिस पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी का बोझ हो, वो कालरूपी नाग पर इतनी शांत मुद्रा में कैसे विश्राम कर सकता है? वास्तव में सभी देवी देवताओं की तस्वीरें भी लोगों को प्रेरणा देने के लिए हैं, लेकिन लोग अक्सर इस बात को नहीं समझ पाते. यहां जानिए कि भगवान विष्णु को क्यों शेषनाग पर विश्राम करते दिखाया जाता है.
इसलिए शेषनाग पर शयन करते हैं नारायण
दरअसल भगवान विष्णु का ये बेहद शांत स्वरूप लोगों को बुरे वक्त में संयम और धीरज रखने और मुश्किलों को नियंत्रित करने की प्रेरणा देता है. भगवान विष्णु जो पूरी सृष्टि के संचालक हैं वो इतनी बड़ी जिम्मेदारी के बावजूद वे क्षीर सागर में कालरूपी नाग पर निश्चिंत होकर विश्राम करते हैं. ऐसे में वे चिंतन करते हुए नजर आते हैं, मानों जगत में उत्पन्न तमाम समस्याओं का समाधान खोज रहे हों. इस तस्वीर में क्षीर सागर को सुख का प्रतीक माना गया है और शेषनाग को काल यानी दुख का प्रतीक माना गया है. ऐसे में नारायण का ये स्वरूप काल, दुख, विपत्तियों और भय से मुक्त होकर हर परिस्थिति में सम भाव की स्थिति में रहने की प्रेरणा देता है.
Read More : प्रधानमंत्री मोदी कल कोलकाता में चित्तरंजन राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के दूसरे परिसर का उद्घाटन करेंगे
जिस तरह नारायण पर संसार को पालने का जिम्मा है, उसी तरह मानव भी प्रत्येक पल कर्तव्य और जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है. इनमें पारिवारिक, सामाजिक तथा आर्थिक दायित्व अहम होते हैं. इन दायित्वों का निर्वहन करते हुए उसके जीवन में तमाम समस्याएं और परेशानियां आती हैं. कालरूपी नाग की तरह कई बार ये हालात व्यक्ति को बुरी तरह प्रभावित करते हैं और वो इनके कारण टूट जाता है. ऐसे में उसे नारायण की प्रतिमा को देखकर प्रेरणा लेनी चाहिए कि किस तरह वे विपरीत परिस्थितियों में भी शांत, स्थिर, निर्भय तथा निश्चिंत मन से अपने धर्म का पालन करते हैं. नाग की शैय्या पर शयन करने के बावजूद वो कभी विचलित नहीं होते. इसी तरह व्यक्ति को भी हर परिस्थिति में निश्चिंत रहकर अपना धर्म निभाते रहना चाहिए.
जानिए क्यों नारायण को कहा जाता है हरि
भगवान विष्णु को हरि के नाम से भी जाना जाता है. हरि का अर्थ होता है हरने वाला. जब जब धरती पर संकट आता है, या व्यक्ति किसी बड़ी परेशानी में पड़कर भगवान विष्णु का सच्चे दिल से स्मरण करता है, तो प्रभु उसके सारे दुख, संताप और पाप हर लेते हैं. इस कारण उनके भक्त उन्हें प्रेमपूर्वक श्रीहरि और हरि के नाम से पुकारते हैं.