कहानी – चंद्रशेखर आजाद की युवा अवस्था से जुड़ी घटना है। युवा चंद्रशेखर भारत का ध्वज लेकर एक जुलूस में चल रहे थे। उस जुलूस में नारे लग रहे थे अंग्रेजों भारत छोड़ो, गांधी जिंदाबाद, हमारा देश स्वतंत्र हो।पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया और युवा चंद्रशेखर को पकड़ लिया। जब अदालत में उसे पेश किया गया तो जज ने पूछा, ‘तुम्हारा नाम क्या है?’युवक ने जवाब दिया, ‘आजाद।’जज ने बाप का नाम पूछा तो युवक ने कहा, ‘स्वाधीन।’
जज समझ गया कि जो पूछा जा रहा है, उसका ये उल्टा जवाब दे रहा है। गुस्से में जज ने कहा, ‘कहां रहते हो?’युवक ने जवाब दिया, ‘कारागृह में। मेरा घर जेलखाना है।’
जज ने आदेश दे दिया कि इसे जेल भेजो और उससे पहले एक खुले मैदान में 15 कौड़े भी लगाए जाएं। जज के आदेश पर ऐसा हुआ भी। जब उस युवक को कौड़े मारे जा रहे थे तो वह वंदे मातरम्, वंदे मातरम् बोलता रहा।
कुछ दिनों बाद जब वह युवक जेल से बाहर आया तो डॉ. संपूर्णानंद ने उस युवक से कहा, ‘तुम्हारा नाम तो चंद्रशेखर है, लेकिन जिस ढंग से तुमने अदालत में उस जज से बात की थी, उसकी वजह से मैं तुम्हें नया नाम आजाद देता हूं।’इसके बाद सारी दुनिया उन्हें चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानने लगी।
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सीख – इस घटना का संदेश ये है कि कैसे किसी व्यक्ति का काम उसकी पहचान बन जाता है। जब हम अच्छे काम करते हैं तो हमारी पहचान उन कामों की वजह से होने लगती है। इसलिए कुछ ऐसे अच्छे काम करना चाहिए, जिन्हें लोग हमेशा हमारे नाम के साथ जोड़कर याद रखें।