Sunday, August 3, 2025
Homeदेशनाबालिगों को मजबूर करना जघन्य अपराध नहीं -इलाहाबाद हाईकोर्ट

नाबालिगों को मजबूर करना जघन्य अपराध नहीं -इलाहाबाद हाईकोर्ट

 डिजिटल डेस्क: नाबालिगों को जबरन सामना करने के लिए मजबूर करना कोई जघन्य अपराध नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में ऐसा विवादित फैसला सुनाया है। इसलिए दोषी पाए गए दोषी की सजा को दस साल से घटाकर सात साल कर दिया गया।

 घटना 2016 में झांसी में हुई थी। सोनू कुशवा पर दस साल के लड़के पर जबरदस्ती सेक्स करने का आरोप लगाया गया था। किशोरी के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सोनू उसके बेटे को मंदिर जाने के नाम पर ले गया था। वह किशोरी को सुनसान जगह पर ले गया और जबरदस्ती उसका सामना करने के लिए कहा। इसके बदले उसने किशोरी को 20 रुपये दिए।

 किशोरी जब घर लौटी तो परिजनों ने उसके हाथ में बीस रुपये देखे। यह पैसा कहां से आया? पूछताछ करने पर किशोरी ने सारी बात बताई। तब उसके पिता पुलिस के पास पहुंचे। निचली अदालत में जब मामला आया तो सोनू को पोक्सो एक्ट के तहत 10 साल जेल की सजा सुनाई गई। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ सोनू ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील दायर की थी.

 चूहे-छछूंदर का घर में रहना शुभ या अशुभ, जानें शकुन शास्‍त्र में बताए ये जरूरी संकेत

हाल ही में जब यह मामला न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा की अदालत में आया तो उन्होंने सोनू की सजा को 10 साल से घटाकर सात साल कर दिया। तर्क दिया जाता है कि पोक्सो एक्ट की वह धारा, जिसके तहत सोनू को 10 साल जेल की सजा सुनाई गई थी, एक जघन्य अपराध पर आधारित थी। लेकिन जबरदस्ती कोई जघन्य अपराध नहीं है। प्रवेश एक जघन्य अपराध होता। इसलिए सोनू की सजा कम कर दी गई। हालांकि, कई इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से असहमत हैं। उनके अनुसार किसी भी तरह का यौन उत्पीड़न एक जघन्य अपराध है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments