एस्ट्रो डेस्क : रविवार 24 अक्टूबर को विवाहित महिलाओं का महान व्रत पर्व वक्र चौथ है। इस दिन महिलाएं अपने पति के सुख, सौभाग्य, स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। शाम को चंद्रमा को देखने और पूजा करने के बाद वह जल ग्रहण करते हैं। यह व्रत है निर्जला यानी महिलाएं इस दिन पानी तक नहीं पीती हैं. चतुर्थी में चौथ माता की पूजा करने की परंपरा है।अनुसार करवा चौथ और अर्घ्य पर चैत माता की पूजा चंद्रोदय के बाद की जाती है। उसके बाद महिलाएं भोजन और पानी लेती हैं। चौथ माता की आराधना में इनकी कथा का पढ़ना और सुनना अत्यंत आवश्यक है। जानिए वक्र चौथ की कथा…
प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में इंद्रप्रस्थ क्षेत्र में वेद शर्मा नाम का एक ब्राह्मण था। उनकी पत्नी का नाम लीलावती था। उनके सात बेटे और एक बेटी थी जिसका नाम बीरबती था। सात भाइयों के बाद बीरबती ने भी शादी कर ली। विवाह के बाद जब कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्थी आई तो बीरवती ने भी अपने भाई-बहनों के साथ करवा चौथ का व्रत किया, वह चंद्रोदय से पहले भूख-प्यास के कारण बेहोश हो गई।
सातों भाई-बहनों की हालत देखकर वे परेशान हो गए। फिर भाइयों ने एक पेड़ के पीछे एक मशाल जलाई और बहन को बताया कि चाँद उग आया है। बीरवती ने भाइयों की बात मानी और व्रत तोड़ा और खा लिया।
कुछ देर बाद ही उसके पति की मौत हो गई। अपने पति की मृत्यु के बाद, बीरवती ने भोजन और पानी छोड़ दिया। उसी रात इंद्राणी धरती पर आई। ब्राह्मण पुत्री ने अपने पति की मृत्यु का कारण पूछा। इंद्राणी ने कहा कि आपने अपने पिता के घर में वक्र चौथ का व्रत किया था, लेकिन आपने वास्तविक चंद्रमा के उदय से पहले प्रसाद चढ़ाकर भोजन किया, जिससे आपके पति की मृत्यु हो गई।
अब पति को पुनर्जीवित करने के लिए वक्र चौथ का व्रत करें। माला के पुण्य प्रभाव से आपके पति को फिर से जीवन का उपहार मिल सकता है।
बीरवती ने पूरे वर्ष की चतुर्थी को व्रत रखा, जिसके बाद जब वक्र चौथ आया तो उन्होंने पूरे विधि-विधान से उस दिन का व्रत किया। इससे खुश होकर इंद्राणी ने अपने पति को अपनी जान दे दी।
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यह है वक्र चौथ की लघु कथा। मान्यता है कि इस कथा को पढ़ने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।