Tuesday, October 14, 2025
Homeधर्म16 दिवसीय पितृपक्ष आज से शुरू, जानें क्यों होता है श्राद्ध कर्म...

16 दिवसीय पितृपक्ष आज से शुरू, जानें क्यों होता है श्राद्ध कर्म ?

पितृपक्ष की शुरुआत आज से हो गई है। हिंदू धर्म में पितृपक्ष का काफी महत्व माना जाता है। अपने पूर्वजों का आशीर्वाद पाने के लिए पूरे मन और विधि-विधान के साथ श्राद्ध कर्म किया जाता है। तर्पण और पिंडदान जैसे कार्य करने के लिए लोगों ने तैयारी पूरी कर ली है। गंगा घाटों पर भी तमाम लोगों के पहुंचकर तर्पण किए जाने के मद्देनजर सुरक्षा व्यवस्था के काफी इंतजाम किये गए है | आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है। पंचांग के अनुसार इस बार पितृपक्ष 15 नहीं बल्कि 16 दिनों तक रहेगा।

हिंदू धर्म में पितृपक्ष का काफी महत्व होता है। इन 15-16 दिनों में लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं साथ ही उनका श्राद्ध कर्म करते हैं। सम्मान के साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा की जाती है। पूर्वजों को याद करने से वह अपनी दया-दृष्टि घर-परिवार बनाएं रखते हैं। श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कार्य करने के लिए लोगों ने तैयारी पूरी कर ली है। लोगों ने पंडितों को बुक किया है तो बाजारों में श्राद्ध से संबंधित सामग्री की खरीदारी की।

पितृपक्ष के दौरान पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान किए जाते हैं। इन कार्यों के करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष के दौरान दान करने का भी विशेष महत्व है। इस बार दस सितंबर से पितृपक्ष शुरु हो रहा है और पच्चीस सितंबर तक चलेगा। बाकी सारी तिथियां तो यथावत हैं लेकिन तृतीया और चतुर्थी एक ही दिन 13 सितंबर को होगा।

क्यों होता है श्राद्ध

निधन के बाद एक वर्ष का कार्यकाल प्रतीक्षाकाल कहा जाता है। बरसी तक श्राद्ध कर्म नहीं होते हैं। उसके बाद श्राद्ध कर्म करके हम अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धावनत होते हैं। मान्यता है कि पितृपक्ष में हमारे पितृ घर के द्वार पर आते हैं।

कितनी पीढ़ियों का

तीन पीढ़ियों तक का श्राद्ध कर्म होता है। इसमें मातृकुल और पितृकुल (नाना और दादा) दोनों शामिल होते हैं। तीन पीढ़ियों से अधिक का नहीं होता है। हां, ज्ञात-अज्ञात के नाम का श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए।

श्राद्ध करने की विधियां

किसी भी रूप में श्राद्ध किया जा सकता है | तर्पण, दान, भोजन, भावांजलि, तिलांजलि। पितरों के निमित भोजन निकालने से पूर्व गाय, कौआ, कुत्ते का अंश निकाला जाता है। तीनों यम के प्रतीक हैं।

जानते है संक्षिप्त विधि

यदि किसी कारण विस्तृत रूप से श्राद्ध नहीं कर पाएं तो दान कर देना चाहिए। दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके अपने दायें हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की तरफ करके ऊं मातृ देवताभ्यो नम: ऊं पितृ देवताभ्यो नम: तीन बार पढ़ लेना चाहिए। यह भावांजलि कहलाती है।

तर्पण का समय

सूर्य अच्छी तरह चढ़ जाता है, तब तर्पण करना चाहिए। आदर्श समय मध्याह्न 11.30 से 12.30 तक माना गया है। तर्पण और श्राद्ध कर्म सायंकालीन नहीं है। यह दिन में ही होगा।

read more :क्या जीसस ही असली भगवान का रूप हैं ? राहुल गाँधी का पादरी जॉर्ज पोन्नैया से सवाल

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments