Wednesday, September 17, 2025
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पोंगल का क्या होता है अर्थ? जानिए इस त्योहार के पूजा का शुभ मुहुर्त…

 पोंगल (Pongal) त्योहार का एक खास महत्व है. ये प्रसिद्ध त्योहार दक्षिण भारत में हर साल मनाया जाता है. उत्साह से भरा ये त्योहार 14 जनवरी यानी कि मकर संक्रांति से शुरू होता है जो 4 दिन तक चलता है और फिर 17 जनवरी को इस पर्व का समापन होता है. मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति (Makar Sankranti) और लोहड़ी पर्व (Lohri Parv) की तरह ही पोंगल पर्व को भी फसल के पक जाने और नई फसल के आने की खुशी में मनाया जाता है. इतना ही नहीं पोंगल का त्योहार (Pongal Festival) दक्षिण भारत के लोग नए साल के रूप में भी मनाते हैं. मान्यता के अनुसार इस दिन लोग पुराने सामान को घरों से निकाल देते हैं और घरों को खास रूप से रंगोली आदि से सजाते हैं.

आइए जानते हैं पोंगल का मुहुर्त और अर्थ
पोंगल का शुभ मुहुर्त
आपको बता दें कि पोंगल की पूजा का शुभ मुहूर्त 14 जनवरी दोपहर 02 बजकर 12 मिनट पर है.

क्या है पोंगल की विशेषता
कहते हैं कि दक्षिण भारत का ये त्योहार संपन्नता को समर्पित होता है. इस दिन धान की फसल को एकत्रित करने के बाद ही खुशी को प्रकट करते हुए पर्व को मनाया जाता है और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आने वाली फसलें भी अच्छी हों. इस त्योहार पर समृद्धि लाने के लिए वर्षा, सूर्य देव, इंद्रदेव और मवेशियों(जानवरों) की पूजा की जाती है.

क्या होता है पोंगल का अर्थ
माना जाता है कि पोंगल त्योहार के ठीक पहले जो भी अमावस्या होती है उस पर सभी लोग बुराई को त्याग कर अच्छाई को अपनाने की प्रतिज्ञा करते हैं, जिसे ‘पोही’ भी कहा जाता है. पोही का अर्थ होता है कि ‘जाने वाली’ इसके अलावा तमिल भाषा में पोंगल का अर्थ उफान होता है.

जानिए कैसे मनाते हैं पोंगल?
आपको बता दें कि चार दिन तक इसको मनाया जाता है, सभी तरह के कचड़े आदि को जला दिया जाता है. त्योहार पर अच्छे अच्छे पकवान बनाए जाते हैं. पर्व के पहले दिन कूड़ा-कचरा जलाया जाता है, दूसरे दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जबकि तीसरे दिन खेती को करने वाले मवेशियों की पूजा की जाती है, और फिर चौथे दिन काली जी की पूजा की जाती है. त्योहार पर घरों में खास रूप से सफाई की जाती है और रंगाली बनाई जाती है. इस त्योहार पर नए कपड़े और बर्तन खरीदने का भी महत्व होता है.पोंगल में गाय के दूध में उफान को भी महत्वपूर्ण बताया गया है.

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