एस्ट्रो डेस्क – कहानी – आचार्य चाणक्य बहुत सोच समझकर इसका उत्तर देते थे। एक दिन राजा चंद्रगुप्त मौर्य, महासचिव चाणक्य और महारानी कुछ बात कर रहे थे।
बोलते हुए राजा चंद्रगुप्त ने चाणक्य से कहा, ‘तुम्हारा रंग काला है, तुम दूर से बदसूरत दिखते हो, लेकिन तुम बहुत प्रतिभाशाली हो। आप भी हैंडसम होते तो बहुत अच्छा होता। भगवान कैसे गलती कर सकते हैं।’जब रानी को यह पसंद नहीं आया, तो उसने कहा, “महाराज, यह रूप, जिस पर हर कोई मोहित है, क्षणभंगुर है।” इसका कोई स्वाद नहीं है।
राजा ने कहा, ‘तुम स्वयं बहुत सुंदर हो, तुम्हें रूप की परवाह नहीं है। एक उदाहरण दीजिए जहां गुणवत्ता रूप से अधिक महत्वपूर्ण है।’चाणक्य ने उत्तर दिया। उसने राजा से कहा, ‘थोड़ा पानी पी लो।’ चाणक्य ने दो गिलास भरकर राजा को पानी पिलाया।
चाणक्य ने कहा, ‘मैंने जो पहला गिलास दिया वह सुंदर सोने के बर्तनों से भरा था। दूसरा गिलास एक काली मिट्टी के बर्तन से भरा गया था। बताओ कौन सा खाना अच्छा लगता है?’राजा ने कहा, ‘मिट्टी के घड़े का पानी अच्छा लगता है।’
चाणक्य ने कहा, “मिट्टी के घड़े के पानी से संतुष्टि मिली है।” उसी प्रकार यह रूप सोने के घड़े के समान और गुण मिट्टी के पात्र के समान हैं। तृप्ति पुण्य से आती है और रूप अस्पष्ट है।’
पाठ – चाणक्य की यह चर्चा आज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी है। कभी भी किसी की उपस्थिति की आलोचना न करें। अगर कोई बेहद खूबसूरत है तो उस पर ज्यादा मोहित न हों और अगर कोई खूबसूरत नहीं है तो उससे भागें नहीं। सबसे पहले मनुष्य को मानवीय गुणों को देखना चाहिए।
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