रामधारी सिंह दिनकर से जुड़ा किस्सा है। एक बार फिर से दिनकर जी का ट्रांसफर हो गया था। मित्रों ने उनसे कहा, ‘दिनकर जी, ऐसे कैसे नौकरी करेंगे? ये आपका 22वां ट्रांसफर है।’दिनकर जी बोले, ‘मूलरूप से मैं एक कवि, विचारक और देशभक्त हूं। अंग्रेज सरकार को ये डर है कि मैं कुछ ऐसा साहित्य प्रकाशित करूंगा, जो उनके विरुद्ध जाएगा। अंग्रेज सरकार का ये सोचना है। मुझे तो अपने देश के लिए जो करना है, वह तो मैं करूंगा ही।’
ये सुनकर सभी चौंक गए। मित्रों ने कहा, ‘केवल आपका ट्रांसफर ही नहीं हुआ है, बल्कि अंग्रेज सरकार ने आपके पीछे गुप्तचर भी छोड़ दिए हैं।’
दिनकर जी बोले, ‘मेरे पिता रवि सिंह ज्यादा पढ़े-लिखे तो नहीं थे, लेकिन एक ऐसे किसान थे जो कहा करते थे कि अगर बीज बोया है तो फसल उगेगी, फसल उगेगी तो काटना भी है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में बहुत सावधानी रखनी होती है। मेरी मां एक धार्मिक स्त्री थी। पूरा गांव उनका सम्मान करता था। वो भी कहा करती थी कि जो भी काम करो, उसमें चरित्र प्रधान होना चाहिए। इसलिए मुझे इस बात से फर्क नहीं पड़ता है। फर्क इससे पड़ता है कि मैं देश के लिए क्या करता हूं। मेरी पत्नी श्यामवती मेरे साथ है। मैंने अपने परिवार से जो संस्कार पाए हैं, वह मैं देश को अर्पित करूंगा।’देश आजाद हो गया और विद्रोही कवि राष्ट्र कवि बन गए।
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सीख
हम किसी भी व्यवस्था का अंग हों, अगर हम सही हैं और व्यवस्था गलत तो टूटना नहीं चाहिए। अच्छी बातें समय आने पर सम्मान जरूर हासिल करती हैं।