दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का मामले में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अफसरों की ट्रांसफर- पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को देने के 11 मई के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है। बता दें कि दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था।
इससे पहले केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उलट दिया। दरअसल, केंद्र सरकार ने जो अध्यादेश जारी किया है उसके मुताबिक दिल्ली सरकार अधिकारियों की पोस्टिंग पर फैसला जरूर ले सकती है लेकिन अंतिम मुहर उपराज्यपाल ही लगाएंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री तबादले का फैसला अकेले नहीं कर सकेंगे।
The Central Government has moved the Supreme Court today against its judgement holding that the National Capital Territory of Delhi has legislative and executive power over administrative services in the National Capital, excluding matters relating to public order, police and… pic.twitter.com/vsOikRMe4S
— Live Law (@LiveLawIndia) May 20, 2023
अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए बनी एक अथॉरिटी
इस अध्यादेश की अहम बात ये है कि अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए एक अथॉरिटी बना दी गई है। इस नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, दिल्ली के चीफ सेक्रेट्री और प्रिंसिपल होम सेक्रेट्री होंगे। इस अथॉरिटी में अगर अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग में कोई विवाद होता है तो वोटिंग होगी। अगर मामला इससे भी नहीं सुलझा तो आखिरी फैसला उपराज्यपाल लेंगे। यानी एक तरह से दिल्ली के उपराज्यपाल को फिर से पहले का अधिकार वापस मिल गया है। अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग, विजिलेंस का काम यही अथॉरिटी देखेगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री इस अथॉरिटी के पदेन अध्यक्ष होंगे।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला ?
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 11 मई को अपने फैसले में कहा था दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, चुनी हुई सरकार को प्रशासन चलाने की शक्तियां मिलनी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता तो यह संघीय ढांचे के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। अधिकारी जो अपनी ड्यूटी के लिए तैनात हैं उन्हें मंत्रियों की बात सुननी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता है तो यह सिस्टम में बहुत बड़ी खोट है। चुनी हुई सरकार में उसी के पास प्रशासनिक व्यस्था होनी चाहिए। अगर चुनी हुई सरकार के पास ये अधिकार नहीं रहता तो फिर ट्रिपल चेन जवाबदेही की पूरी नहीं होती।
उन्होंने कहा कि एन सी टी एक पूर्ण राज्य नही है ऐसे में राज्य पहली सूची में नहीं आता। एन सी टी दिल्ली के अधिकार दूसरे राज्यों की तुलना में कम है। फैसला सुनाने से पहले उन्होंने कहा था कि ये फैसला सभी जजों की सहमित से लिया गया है। उन्होंने कहा कि ये बहुमत का फैसला है। सीजेआई ने फैसला सुनाने से पहले कहा कि दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने को लिए केंद्र की दलीलों से निपटना आवश्यक है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि ये मामला सिर्फ सर्विसेज पर नियंत्रण का है।
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