Friday, November 22, 2024
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 लिपुलेख सड़क के निर्माण पर नेपाल का ऐतराज, कहा- पूरा इलाका हमारा

नई दिल्ली : भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद गहराता जा रहा है। लिपुलेखे में सड़क निर्माण और विस्तार की भारतीय परियोजना पर नेपाल ने एक बार फिर आपत्ति जताई है। नेपाल ने रविवार को भारत से पूर्वी काली नदी क्षेत्र में एकतरफा निर्माण और विस्तार को रोकने के लिए कहा। हालांकि, नेपाल ने औपचारिक राजनयिक विरोध दर्ज नहीं कराया है। नेपाल 30 दिसंबर, 2021 से सड़क निर्माण का विरोध कर रहा है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हल्द्वानी में अपनी चुनावी रैली में लिपुलेख रोड के निर्माण की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार सड़क का चौड़ीकरण करेगी।

लिपुलेख पर नेपाल का दावा
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, नेपाल लिपुलेख क्षेत्र में अपनी जमीन पर दावा कर रहा है। नेपाल के सूचना एवं प्रसारण मंत्री ज्ञानेंद्र बहादुर कार्की ने कहा है कि काली नदी के पूर्व में स्थित लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी नेपाल का अभिन्न अंग हैं और इस क्षेत्र का कोई भी हिस्सा भारत में इस तरह नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत और नेपाल के बीच किसी भी सीमा विवाद को दोनों देशों के बीच मौजूदा द्विपक्षीय संबंधों की भावना को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक दस्तावेजों, मानचित्रों और दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर राजनयिक चैनलों के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। लिपुलेख दर्रा कालापानी के पास एक सुदूर पश्चिमी बिंदु है, जो नेपाल और भारत के बीच का सीमा क्षेत्र है। भारत और नेपाल दोनों कालापानी को अपने क्षेत्र के अभिन्न अंग के रूप में दावा करते हैं। भारत इसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले और नेपाल को धारचूला जिले का हिस्सा मानता है।

हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट है – भारत
नेपाल का ताजा बयान ऐसे समय आया है जब भारत ने साफ कर दिया है कि जिस इलाके में सड़क बन रही है वह भारत का है। हालांकि, भारत ने यह भी कहा है कि किसी भी विवाद को द्विपक्षीय दोस्ती की भावना से बातचीत के जरिए सुलझाया जाना चाहिए। काठमांडू में भारतीय दूतावास ने एक बयान में कहा कि भारत-नेपाल सीमा पर भारत सरकार की स्थिति जानी-पहचानी, सुसंगत और स्पष्ट है। इस बात की जानकारी नेपाल सरकार को दे दी गई है। हालांकि, बयान में आगे कहा गया है कि हम मानते हैं कि स्थापित अंतर-सरकारी प्रणाली और मीडिया संवाद के लिए सबसे उपयुक्त हैं। हमारे घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों की भावना में, शेष सीमा मुद्दों को हमेशा आपसी समझौते के माध्यम से हल किया जा सकता है।

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द्विपक्षीय संबंधों पर पड़ा डेढ़ साल का असर
कालापानी और लिपुलेख क्षेत्रों की मांग को लेकर पिछले डेढ़ साल से भारत और नेपाल के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा गुजरात वाइब्रेंट मीटिंग में शामिल होने वाले थे। हालांकि कोविड-19 के कारण बैठक रद्द कर दी गई थी, लेकिन उनके आने की संभावना बहुत कम थी। हालात तब और खराब हो गए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड में हाल ही में एक चुनावी रैली में सड़क निर्माण की घोषणा की। इसके साथ ही नेपाल की आंतरिक राजनीति में बवाल शुरू हो गया। इसको लेकर नेपाल के नेताओं में गुस्सा है। इसका समाधान करना नेपाल में भारतीय राजदूत बिनॉय मोहन क्वात्रा के लिए एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है।

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