डिजिटल डेस्क : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार द्वारा मदरसों को दिए जाने वाले फंड पर आपत्ति जताई है। बुधवार को हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या धर्मनिरपेक्ष राज्य धार्मिक शिक्षा के लिए फंड दे सकते हैं। अदालत ने सरकार से आगे पूछा कि क्या धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले मदरसे मौलिक अधिकारों के तहत सभी धर्मों की आस्था की रक्षा कर रहे हैं। मदरसा अंजुमन इस्लामिया फैजुल उलूम की प्रबंध समिति के अनुरोध पर न्यायमूर्ति अजय वनोट ने राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर सवाल का जवाब देने को कहा।
मदरसा अंजुमन इस्लामिया फैजुल उलूम की प्रबंध समिति अर्जी की
दरअसल मदरसा अंजुमन इस्लामिया फैजुल उलूम की प्रबंध समिति ने कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. यह मदरसा मान्यता प्राप्त है और सरकारी फंडिंग से चलाया जाता है। मदरसे ने अतिरिक्त पदों के लिए अनुमति मांगी, जिसे सरकार ने अस्वीकार कर दिया। इसके खिलाफ मदरसा हाईकोर्ट गया था। कोर्ट ने ये सवाल सरकार से पूछे हैं. कोर्ट ने राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त और सरकारी सहायता प्राप्त धार्मिक शिक्षण संस्थानों के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी.
क्या एक समुदाय और धर्मनिरपेक्ष राज्य धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते हैं?
मदरसे संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 में निहित मौलिक अधिकारों के तहत धार्मिक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं?
सरकार अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए धार्मिक शिक्षण संस्थानों को भी अनुदान दे रही है?
महिलाओं को मदरसे में प्रवेश की अनुमति नहीं है? यदि हां, तो क्या यह भेदभावपूर्ण नहीं है ?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आर्थिक रूप से सहायता प्राप्त मदरसों और अन्य सभी धार्मिक शिक्षण संस्थानों के लिए पाठ्यक्रम, शर्तें और मानक प्रदान करने के लिए सरकार को 4 सप्ताह का समय दिया है। वहीं मदरसा अंजुमन इस्लामिया फैजुल उलूम की प्रबंध समिति की अर्जी पर अब अगली सुनवाई 6 अक्टूबर को होगी.
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