डिजिटल डेस्क : “कहते हैं मेरा भारत महान है “ सच में ये कितना महान है ये सभी इतिहास के पन्ने में दर्ज है। लेकिन वर्तमान के साथ अगर अतित की तुलना करे तो ये गलत होगा क्योंकि ये है नया भारत।
जी हाँ इस नया भारत में सबकुछ संभव है । यहां एक हत्यारा भी सत्ता के भागीदार हो सकता है! 21वीं सदी की भारत में सब जायज है । यहां की राजनीति अब देश के विकास के लिए नहीं है ये तो अपराधीक तंत्र का नया नीति है। जहाँ दागीओं का निर्देश चलता है। यहाँ जुमले वाजों की राज चलता है। ये बात इस लिए अहम है की जिस तरह से सत्ता पर अपराध तंत्र का हिस्सा बढ़ता जा रहा है इससे साफ है कि विकास नहीं बल्की भड़काऊ चाहिए। आज हम इस बात जिक्र इस लिए कर रहैं की जिस तरह से एक के बाद एक घटनाओं के साथ राजनीति तंत्र का हाथ देखा जा रहा है इसका जिम्मेदार कौन है?
पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में बनी लखीमपुर नाले पर तिकुनिया में सन्नाटा है। गाडिय़ां, थकी पुलिस और सच्चाई की तलाश कर रहे चंद पत्रकारों को जलाने के बाद भी इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि 48 घंटे पहले यहां हुए दंगों में 8 लोगों की जान चली गई थी। मेरे मन में यह सवाल आता है कि स्थिति इतनी जल्दी नियंत्रण में कैसे आ गई? लोग इतना सामान्य क्यों महसूस करते हैं? सरकार ने इस पूरे मामले को कैसे नियंत्रित किया?
फिर, जैसे ही हम दृश्य से आगे बढ़ते हैं, चीजें परत दर परत सामने आने लगती हैं। तिकुनिया से करीब 10 किलोमीटर दूर पलिया से यहां आए किसान जगरूप सिंह ने कहा कि आज एक नेता के बेटे ने किसानों के बच्चों की हत्या कर दी और पांच लाख रुपये का समझौता हो गया. कल एक और नेता का बेटा किसानों को मारेगा और 50 लाख रुपये देगा। किसानों को इतनी जल्दी सरकार से समझौता नहीं करना पड़ा। कल हजारों किसान थे, आज लाखों लोग हैं। राकेश टिकैत ने आनन-फानन में धरना समाप्त किया।
जब हमने इस घटना के चश्मदीदों से सवाल किया तो वे खुलेआम किसानों पर हमले की बात कर रहे थे, लेकिन लोग जवाबी हिंसा में लोगों की मौत पर सवाल उठाने से हिचकिचा रहे थे. किसान संगठन से जुड़े कार्यकर्ता और स्थानीय नेता यहां से करीब 100 किलोमीटर दूर बहराइच जिले के नानपारा गांव में हुए विकास को लेकर चिंतित थे, जहां हिंसा में मारे गए दो सिख युवकों का अंतिम संस्कार किया जाना था.
ये नेता आपस में कह रहे थे- पुलिस ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को दबा दिया है, अगर इस घटना की पूरी सच्चाई सामने नहीं आई तो किसान आंदोलन पटरी से उतर जाएगा और किसानों से पूछताछ की जाएगी. जब मैं उनसे बात करने गया तो उन्होंने इस बात से इनकार किया कि वह अभी नानपारा के विकास पर चर्चा कर रहे हैं। उनके शब्दों में किसानों के साथ हुए समझौते को लेकर सरकार से नाराजगी साफ दिखाई दे रही थी.तो आईये जानते है कौन है टेनीदा ?
-5 अगस्त 1990 को तिकुनिया थाने में अजय मिश्रा के साथ 8 लोगों पर मुकदमा दर्ज हुआ था. उन पर हथियारों से लैस होकर मारपीट का आरोप लगाया गया था.
-8 जुलाई 2000 को प्रभात गुप्ता की हत्या में अजय मिश्रा समेत चार लोग नामजद किए गए थे.
-31 अगस्त 2005 को ग्राम प्रधान ने अजय मिश्रा समेत चार लोगों पर घर में घुसकर मारपीट और दंगा फसाद का मुकदमा दर्ज कराया था.
-24 नवंबर 2007 को अजय मिश्रा समेत तीन लोगों पर घर में घुसकर मारपीट का चौथा मुकदमा दर्ज हुआ था.
अजय मिश्रा पर 2005 और 2007 के मारपीट के मुकदमों में अजय मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा उर्फ मोनू भी नामजद था.
अजय मिश्रा पर दर्ज चार गंभीर मुकदमों में सबसे गंभीर मुकदमा प्रभात गुप्ता मर्डर केस का था. हत्या के इस मुकदमे में अजय मिश्रा लोअर कोर्ट से बरी कर दिए गए. इत्तेफ़ाक़ था कि 29 जून 2004 सुनवाई करने वाले जज ने अजय मिश्रा को हत्या के मुकदमे में बरी किया और 30 जून को जज साहब का रिटायरमेंट हो गया. परिवार ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में अपील दायर की तो वर्तमान में अजय मिश्रा हाई कोर्ट से जमानत पर हैं.
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12 मार्च 2018 से हाई कोर्ट ने भी इस मामले में सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर रखा है. बीते 3 सालों से फैसला सुरक्षित रखने पर हाई कोर्ट डबल बेंच में अपील दायर की है जिस पर अक्टूबर महीने में सुनवाई होना है. लखीमपुर हिंसा के बाद केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा पर एक और मुकदमा दर्ज किया गया है.