पांच दिनों तक मंथन के बाद आखिरकार कांग्रेस ने कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री का नाम फाइनल कर ही लिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया ही कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री होंगे। पांच दिनों से चल रहे कर्नाटक कांग्रेस के सियासी नाटक का आज अंतिम दिन है। अब कांग्रेस की वो प्रेस कॉन्फ्रेंस हो रही है जिसका इंतज़ार पिछले पांच दिन से हो रहा था।
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कर्नाटक के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के नाम का ऐलान किया। इससे पहले बुधवार को आधी रात सिद्धारमैया के नाम पर डीके शिवकुमार ने अपनी सहमति दे दी थी जिसके बाद आज दोनों केसी वेणुगोपाल के घर पर पहुंचे। वहां ब्रेकफास्ट मीटिंग के बाद सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार एक कार में सवार होकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के घर पहुंचे। खरगे के साथ दोनों की तस्वीर रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट की है।
सिद्धारमैया सीएम की रेस में कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार को पीछे छोड़ दिया। डीके शिवकुमार भी लगातार कोशिश करते रहे। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी से लेकर यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी तक से मुलाकात की, लेकिन बात नहीं बनी। सिद्धारमैया डीके शिवकुमार पर भारी पड़े।
कांग्रेस अध्यक्ष श्री @kharge ने यह निर्णय लिया है कि कर्नाटक में विधायक दल के अगले नेता और मुख्यमंत्री श्री @siddaramaiah और उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर उप मुख्यमंत्री के तौर पर श्री @DKShivakumar जी कार्य करेंगे।
आज शाम विधायक दल की बैठक होगी और 20 मई को दोपहर 12:30 बजे शपथ… pic.twitter.com/VBh5rMtH3C
— Congress (@INCIndia) May 18, 2023
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर जिस चेहरे को आगे करके कांग्रेस ने पूरा चुनाव लड़ा उसे सीएम क्यों नहीं बनाया? सिद्धारमैया को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाने की क्या वजह है? आखिर कैसे डीके शिवकुमार पर सिद्धारमैया भारी पड़े ? आइए जानते हैं…
डीके शिवकुमार पर मुकदमों की है बड़ी मुसीबत
एक तो सबसे बड़ा कारण डीके शिवकुमार पर चल रहे मुकदमे हैं। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता यही रही कि डीके शिवकुमार के खिलाफ कई मामले दर्ज हैं। इस बीच, कर्नाटक के डीजीपी को ही सीबीआई का नया डायरेक्टर भी बना दिया गया है। कहा जाता है कि सीबीआई के नए डायरेक्टर डीके शिवकुमार को करीब से जानते हैं। दोनों के बीच बिल्कुल नहीं बनती है। ऐसे में कांग्रेस को लगा कि अगर डीके शिवकुमार को सीएम बना दिया जाता है तो सीबीआई उनकी पुरानी फाइलों को खोल देगी, जिसका नुकसान सरकार को उठाना पड़ेगा।
सिद्धारमैया को मिला ज्यादातर विधायकों ने समर्थन दिया
इस चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत हासिल की है। बताया जाता है कि विधायक दल की बैठक में 95 विधायकों ने खुलकर सिद्धारमैया का नाम लिया। मतलब विधायक सिद्धारमैया को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस ने सिद्धारमैया की जगह डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बना दिया होता तो संभव है कि आगे चलकर सिद्धारमैया बगावत कर सकते थे।
पिछड़े वर्ग में सिद्धारमैया की है मजबूत पैठ
ये सबसे बड़ा कारण है। सिद्धारमैया की पकड़ हर तबके में काफी अच्छी है। खासतौर पर दलित, पिछड़े और मुसलमानों के बीच वह काफी लोकप्रिय हैं। ऐसे में अगर सिद्धारमैया को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री नहीं बनाया होता तो संभव है कि वह पार्टी के खिलाफ जा सकते थे। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के हाथों से दलित, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग का एक बड़ा वोट बैंक भी खिसक सकता था।
लोकसभा चुनाव पर कांग्रेस का फोकस
2013 और फिर 2018 में सरकार बनाने के बावजूद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का परफॉरमेंस ठीक नहीं था। ऐसे में इस बार पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। सिद्धारमैया को पार्टी और सरकार दोनों ही चलाने का अनुभव है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं, जिसमें से 2019 में कांग्रेस को सिर्फ एक सीटें मिली थी। खुद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी गुलबर्गा से चुनाव हार गए थे। ऐसे में अब जब फिर से सूबे में सरकार बन चुकी है तो कांग्रेस ने इस बार ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य बनाया है। इसके लिए पार्टी हाईकमान को सिद्धारमैया का चेहरा ज्यादा मजबूत समझ में आया।
सिद्धारमैया का ‘अहिन्दा’ फॉर्मूला रहा था सफल
सिद्धारमैया लंबे समय से अल्पसंख्यातारु (अल्पसंख्यक), हिंदूलिद्वारू (पिछड़ा वर्ग) और दलितारु (दलित वर्ग) फॉर्मूले पर काम कर रहे थे। अहिन्दा समीकरण के तहत सिद्धारमैया का फोकस राज्य की 61 प्रतिशत आबादी है। 2004 से ही वह इस फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं और काफी हद तक ये सफल भी रहा। ये ऐसा फॉर्मूला है, जिसमें अल्पसंख्यक, दलित, पिछड़ा वर्ग के वोटर्स को एक साथ लाया जा सकता है। कर्नाटक में दलित, आदिवासी और मुस्लिमों की आबादी 39 फीसदी है, जबकि सिद्धारमैया की कुरबा जाति की आबादी भी सात प्रतिशत के आसपास है। 2009 के बाद से कांग्रेस कर्नाटक में इसी समीकरण के सहारे राज्य की राजनीति में मजबूत पैठ बनाए हुई है। यही कारण है कि कांग्रेस इसे कमजोर नहीं करना चाहती है।
चुनाव से पहले किया बड़ा ऐलान
चुनाव से पहले ही सिद्धारमैया ने एलान कर दिया था कि ये उनका आखिरी चुनाव है। इसके बाद वह राजनीति में तो रहेंगे, लेकिन कोई पद नहीं सभालेंगे। चुनाव के बाद भी हाईकमान के सामने उन्होंने यही दांव खेला। उन्होंने कहा कि वह इसके बाद कोई पद नहीं लेंगे। ऐसे में आखिरी बार उन्हें मौका दिया जाना चाहिए। पार्टी को भी ये बात ठीक लगी। ऐसा इसलिए भी क्योंकि कर्नाटक में अब बीएस येदियुरप्पा के बाद सिद्धारमैया ही सबसे वरिष्ठ नेता हैं। ऐसे में पार्टी को उनके अनुभव का फायदा मिल सकता है।
read more : पत्नी और बेटी की चाकू से गोदकर हत्या, अब करने जा रहा हूं सुसाइड
[…] […]