गुजरात के मोरबी से एक दर्दनाक घटना सामने आयी थी। आपको बता दे की मोरबी में ब्रिटिशकाल में मच्चु नदी पर बना झूलता पुल्ल गिर गया। जिसके हादसे तहत महिलाओं और बच्चे समेत 135 लोगो की मौत हो गयी थी । गुजरात हाई कोर्ट ने मोरबी पुल हादसे पर स्वत: संज्ञान ली गई जनहित याचिका पर सुनवाई की। इस ही दौरान अदालत ने टेंडर जारी करने में पाई गईं खामियों को लेकर राज्य सरकार और मोरबी नगर निगम को कड़ी फटकार भी लगाई। कोर्ट ने कहा कि मोरबी नगर पालिका को होशियारी दिखाने की जरूरत नहीं है।
चीफ जस्टिस अरविंद कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने सवाल किया,15 जून 2016 को कॉन्ट्रैक्टर का टर्म समाप्त हो जाने के बाद भी नया टेंडर क्यों नहीं जारी किया गया ? बिना टेंडर के एक व्यक्ति के प्रति राज्य की ओर से कितनी उदारता दिखाई गई। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार को उन कारणों को बताना चाहिए कि आखिर क्यों नगर निकाय के मुख्य अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की गई।
हाई कोर्ट में अब इस मामले पर अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी। साथ ही साथ बेंच ने पूछा कि पहला एग्रीमेंट समाप्त हो जाने के बाद किस आधार पर ठेकेदार को पुल को तीन सालों तक ऑपरेट करने की इजाजत दी गयी है।
सवालों का जवाब हलफनामे में दे राज्य सरकार
अदालत ने कहा कि इन सवालों का जवाब हलफनामे में अगली सुनवाई के दौरान देना चाहिए जो कि दो हफ्तों के बाद होगी। चीफ जस्टिस अरविंद कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ की अनुपलब्धता के कारण सोमवार को इस मामले पर सुनवाई नहीं हो सकी। जस्टिस कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री की पीठ ने 30 अक्टूबर को हुए। हादसे पर 7 नवंबर को राज्य सरकार और राज्य मानवाधिकार आयोग को नोटिस जारी किया। जिसमें सरकार से स्थिति रिपोर्ट मांगी थी।
मृतकों के परिवार वालों को नौकरी को लेकर सवाल
बेंच ने राज्य सरकार से यह भी जानना चाहा कि क्या उन लोगों के परिवार के सदस्य को सहायता के तौर पर नौकरी दी जा सकती है। जो अपनी फैमिली में अकेले कमाने वाले थे लेकिन इस दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। वहीं, राज्य मानवाधिकार आयोग के वकील ने कोर्ट को बताया कि इसकी पुष्टि की जा रही है कि संबंधित परिवारों को मुआवजा दिया गया है या नहीं।
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