Friday, November 22, 2024
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जानिए गागरोन रियासत के प्रतापी शासक से कैसे बने संत

झालावाड़ : हरिमोहन चोडॉवत: झालावाड़ जिला अपने आप में कई इतिहास समेटे हुए हैं लेकिन इन सबके बीच आहू और कालीसिंध नदी के संगम स्थल पर बना संत पीपाजी मंदिर व समाधि स्थल अपनी कुछ अलग ही कहानी बयां करता कि। संत पीपाजी झालावाड़ के जलदुर्ग गागरोन रियासत के प्रतापी शासक हुआ करते थे जिन्होंने युद्ध के दौरान हुए रक्त पाद के बाद अपने मन को द्रवित हो जाने से वैराग्य धारण कर लिया था।संत पीपाजी देश के एकमात्र ऐसे उदाहरण है जो एक राजा के शानो शौकत के ठाट को छोड़कर संत बने और लोगों को राम नाम की शिक्षा देने लगे ।

झालावाड़ शहर के गागरोन जलदुर्ग के समीप आशु और कालीसिंध नदी के संगम पर स्थित संत पीपाजी धाम में इन दिनों संत समागम चल रहा है अवसर है प्रसिद्ध संत पीपा जी की 699 वी जयंती महोत्सव का जिसमें रामानंदी तथा पीपा पंथी समुदाय के संत व अनुयायियों का मेला  लगा हुआ है । संत पीपा जी के 699 वी जयंती के अवसर पर पांच दिवसीय महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है । जिसमें नित्य प्रति सुरभि पूजन भक्तमाल पाठ भोजन प्रसादी संतों के प्रवचन महाआरती तथा रासलीला के आयोजन किए जा रहे ।प्रसिद्ध संत जगत गुरु द्वारा अचार्य श्री राघवाचार्य महाराज तथा राजेंद्र देवाचार्य महाराज भी जयंती महोत्सव में शरीक होने झालावाड़ के संत पीपा धाम पहुंचे हैं ।जिस जगह देशभर के संतों व अनुयायियों का मेला लगा है तो आखिर संत पीपा जी की जीवनी पर भी प्रकाश डालना जरूरी है ।

मीडिया टीम ने प्रसिद्ध इतिहासकार ललित शर्मा से बात की तो उन्होंने बताया कि 14वीं शताब्दी के दौरान झालावाड़ के गागरोन जलदुर्ग रियासत के प्रतापी शासक प्रतापराव खींचे थे। शासक प्रताप राव खींची के अधीन 52 रियासतें होती थी तथा उन्होंने उनके शासनकाल में एक भी युद्ध नहीं हारा था,  लेकिन गागरोन जलदुर्ग पर एक आक्रमण के दौरान हुए रक्तपात के बाद गागरोन के राजा प्रतापगागरोन के राजा प्रताप राव खींची का मन द्रवित हो गया जिसके बाद में  संत कबीर दास के साथ बनारस गए और गुरु रामानंद की शरण में शिक्षा ली। गुरु रामानंद जी ने प्रतापराव को संत पीपाजी का नामकरण कर गागरोन भेज दिया और वैष्णव भक्ति करने का आदेश दिया। बाद में संत रामानंद संत रैदास संत कबीर संत सेन जी महाराज सहित श्री रामानंद जी के बारेबाद में संत रामानंद संत रैदास संत कबीर संत सेन जी महाराज सहित श्री रामानंद जी के 12 शिक्षकों का समागम गागरोन के समीप आहू तथा कालीसिंध नदी के संगम स्थल पर हुआ, जो अब संत पीपा धाम कहलाता है ।

प्रतापी शासक प्रताप राव खींची से संत बने पीपा जी ने पूरे उत्तर पश्चिम भारत में वैष्णव भक्ति की धारा का प्रचार प्रसार किया जिसके बाद अंत समय में पीपा जी ने गागरोन के समीप आबू कालीसिंध नदी के संगम स्थल पर सूर्य व चंद्र की साधना की और यहीं पर समाधि ले गई। झालावाड़ के पीपा धाम मे वह समाधि स्थल और गुफा आज भी मौजूद है, जो अनुयाईयों के लिए दर्शनीय है।

संत पीपा जी ने समाज की कई कुरीतियों को भी दूर करने के प्रभावी प्रयास किए थे जिसके तहत उन्होंने अपनी पत्नी रानी सीता चोरी को पर्दा प्रथा हटाने के लिए प्रेरित किया यहां तक कि उन्होंने दलितों को भी अपने पास बिठाया और अपने कार्य खुद करने के निर्देश दिए यहां तक कि अपने कपड़ों की सिलाई भी संत पीपाजी स्वयं ही करते थे इसी के चलते दर्जी समाज के लोग भी संत पीपाजी के बड़ी संख्या में अनुयाई व उपासक है।

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संत पीपा जी के अनुयायियों की एक बड़ी संख्या है ऐसे में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के दौरान वर्ष 2018 में झालावाड़ में ही संत पीपा धाम के समीप ही संत पीपा जी पेनोरमा का भी निर्माण किया गया । इस पैनोरमा में संत पीपा जी के एक प्रशासक प्रतापी राजा से लेकर संत बनने तक की जीवनी व इतिहास को सजीव मूर्तियों व चित्रों मेंसमेटा गया हैजहां जाकर कोई शोधार्थी भी संत पीपा जी की जीवनी व इतिहास के बारे में शोध कर सकता है वह पूरी जानकारी हासिल कर सकता है ।संत पीपाजी  के जयंती के अवसर पर प्रतिवर्ष झालावाड़ में संतों व अनुयायियों का मेला लगता है ।

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