Saturday, July 12, 2025
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‘संविधान मुझे देता है मांस खाने की अनुमति’ : महुआ मोइत्रा

नई दिल्ली : नवरात्रि के मौके पर दिल्ली के विभिन्न इलाकों में मांस की दुकानों पर लगाई गई रोक का तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने विरोध किया है। उनका कहना है कि जब संविधान उन्हें मीट खाने की इजाजत देता है, तो प्रशासन रोकने वाला कौन होता है।

मेयर ने कहा- सख्ती से होगा बैन का पालन
TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने इस मुद्दे पर ट्वीट करते हुए लिखा है, ‘मैं दक्षिण दिल्ली में रहती हूं। संविधान मुझे इसकी अनुमति देता है कि जब मुझे पसंद हो, मैं मीट खा सकती हूं। दुकानदारों को भी अपना व्यापार चलाने की आजादी है’। बता दें कि दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के मेयर मुकेश सूर्यन ने नवरात्रि के दौरान मीट की दुकानों को बंद करने का आदेश दिया है और कहा है कि इसका सख्ती से पालन किया जाएगा।

मीट शॉप बंद रखने के पीछे दिया ये तर्क
मेयर का कहना है कि नवरात्रि के दौरान मीट की दुकानें खुली रहने से हिंदुओं की भावनाएं आहत होती हैं। लिहाजा दिल्ली वासियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया है। मुकेश सूर्यन ने कहा, ‘लोगों ने मुझसे शिकायत की है। खुले में मांस कटने से उपवास रखने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। क्या ये किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं है’? पूर्वी दिल्ली के मेयर ने भी ऐसी ही अपील की है। उन्होंने कहा है कि वे मांस विक्रेताओं से अपील करते हैं कि लोगों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए अपनी दुकान बंद रखें।

‘नवरात्रि में 90% लोग नहीं खाते मीट’
पूर्वी दिल्ली के मेयर श्याम सुंदर अग्रवाल ने कहा कि नवरात्रि के दौरान 90 प्रतिशत लोग मांसाहारी भोजन नहीं करते। वहीं, मुकेश सूर्यन ने कहा कि जब इस दौरान अधिकांश लोग मीट खाते ही नहीं, तो फिर दुकानें खोलने क्या मतलब। बता दें कि दक्षिण दिल्ली में मीट की करीब 1500 रजिस्टर्ड दुकानें हैं। इससे पहले, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी मीट की दुकानों को बंद रखने के फैसले पर सवाल उठाया था।

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उमर अब्दुल्ला ने भी साधा निशाना
उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा था, ‘रमजान के दौरान हम सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच कुछ नहीं खाते। मुझे लगता है कि ये भी सही ही होगा अगर हम हर गैर-मुसलमानों और पर्यटकों के लिए सार्वजनिक रूप से खाने को प्रतिबंधित कर दें, खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में। अगर दक्षिण दिल्ली के लिए बहुसंख्यकवाद ठीक है, तो ये जम्मू-कश्मीर के लिए भी ठीक होना चाहिए’।

 

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