नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने पिता की संपत्ति पर पुत्रों के अधिकारों को समान रूप से प्रदान किया है और बढ़ाया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में इसकी पुष्टि की। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने यह आदेश पारित किया। न्यायाधीशों ने कहा कि 1958 से पहले भी अचल संपत्ति विरासत के मामले में बेटियों को बेटों के समान अधिकार प्राप्त होंगे। यदि वसीयत लिखे जाने से पहले एक अचल संपत्ति के मालिक की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी स्व-अर्जित संपत्ति विरासत नीति के तहत उसके बच्चों को दी जाएगी। लड़का हो, लड़की हो या दोनों। उत्तरजीविता नियमों के तहत, ऐसी संपत्ति मृतक के भाई-बहनों या अन्य रिश्तेदारों को हस्तांतरित नहीं की जाएगी। भले ही व्यक्ति अपने जीवनकाल में संयुक्त परिवार का सदस्य रहा हो।
मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है। इसके तहत 1949 में मारे गए मरप्पा गोंदर की संपत्ति बिना वसीयत लिखे उनकी बेटी कुपई अम्मल को हस्तांतरित कर दी गई है। फैसले पर टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी ने कहा, “हमारे प्राचीन शास्त्रों में महिलाओं को समान वारिस माना जाता है। चाहे वह संस्मरण हो, एनोटेशन हो या कोई अन्य पाठ। इनमें से कई मामले ऐसे हैं जहां पत्नी और बेटी जैसे महिला वारिसों को मान्यता दी गई है। सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायालयों के निर्णयों में इसका उल्लेख कई बार किया गया है।
न्यायमूर्ति मुरारी ने “मिताक्षरा” कमेंट्री का भी जिक्र किया और कहा कि इसमें दिया गया स्पष्टीकरण निराधार है। बता दें कि ‘मिताक्षरा’ भाष्य भक्त ज्ञानेश्वर ने लिखा था। याज्ञवल्क्य की स्मृति में लिखी गई यह भाष्य जन्म से विरासत के सिद्धांत की व्याख्या करने के लिए जानी जाती है। हिंदू विरासत अधिनियम-1956 में अधिकांश कानूनी व्याख्याएं भी ‘मिताक्षरा’ पर आधारित हैं।
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इस तरह हिंदू विरासत कानून में बेटियों की स्थिति को बढ़ाया जाता है
1956 में, भारत में हिंदू विरासत अधिनियम लागू हुआ। पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर पुत्र-पुत्रियों का समान अधिकार है। 2005 में इसमें और संशोधन किया गया। इसके तहत संयुक्त परिवारों में रहने वाले पिता की संपत्ति में बेटे-बेटियों का समान अधिकार सुनिश्चित किया जाता है। फिर अगस्त 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने लड़कियों के अधिकारों का और विस्तार किया।
शीर्ष अदालत ने उस समय स्पष्ट किया कि हिंदू विरासत अधिनियम, 1956 के अधिनियमन के बाद से, बेटियों ने पिता, दादा और परदादा की स्व-अर्जित संपत्ति पर बेटों को समान अधिकार की गारंटी दी है। और अब ताजा फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भी पुष्टि की है कि पैतृक संपत्ति में बेटी और बेटे के समान अधिकार 1956 से पहले के मामलों में भी लागू होंगे।