कहानी – कर्दम ऋषि और मां देवहूति के बेटे थे कपिल देव, इन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। कर्दम ऋषि तपस्या करने जंगल में जा रहे थे तो अपनी पत्नी देवहूति को बेटे कपिल देव के पास छोड़ गए।
एक दिन देवहूति ने कपिल देव से कहा, ‘तुम ज्ञान का अवतार हो तो मैं तुम्हारे प्रवचन सुनना चाहती हूं।’
कपिल देव ने अपनी माता को जीवन कैसे जिया जाए, इस पर बहुत सुंदर प्रवचन दिया। प्रवचन के अंतिम चरण में देवहूति को ये बात समझ आ गई कि मृत्यु अटल है, सभी को मरना है तो जीवन के समापन अवसर पर कुछ ऐसी तैयारियां कर ली जाएं, जिससे अंतिम समय पर आसानी से देह का अंत हो जाए और आत्मा इस देह को छोड़कर आगे बढ़ जाए।
कपिल देव के प्रवचन पूरे होने के बाद देवहूति एकाग्रता के साथ ध्यान करने लगीं। जब उनकी मृत्यु का समय आया तो उनके मन में अपने बेटे कपिल देव के लिए मोह जाग गया। उन्हें लगा कि पति तो जंगल में तप कर रहे हैं और मेरी मृत्यु के बाद बेटा अकेला रह जाएगा।
गृहस्थ जीवन में अपने परिवार से प्रेम होना स्वभाविक है, लेकिन देवहूति समझ चुकी थीं कि मृत्यु तो होना ही है तो जाते समय भी प्रसन्नता के साथ जाना चाहिए। देवहूति ने लगातार ध्यान करते हुए आत्मा और शरीर के अंतर को समझ लिया। जब उनका अंतिम समय आ गया तो उन्होंने प्रसन्नता के साथ देह त्याग दी।
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सीख – प्रसन्नता, सुख-शांति और सफलता की सीख परिवार के सदस्यों से भी मिल सकती है। अगर परिवार के किसी व्यक्ति से कोई सीख मिलती है तो उसे स्वीकार जरूर करें। मृत्यु अटल है, ये बात समझें और बुढ़ापे में इस बात की तैयारी कर लेनी चाहिए कि देह त्यागते समय कष्ट कम से कम हो। अगर सारी व्यवस्थाएं ठीक करके देह छोड़ेंगे तो परिवार को कम समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।