एस्ट्रो डेस्क : आचार्य चाणक्य के सिद्धांत और विचार आपको थोड़े कठोर लग सकते हैं, लेकिन यही कठोरता जीवन का सत्य है। जीवन की भागदौड़ में हम भले ही इन विचारों को नज़रअंदाज़ कर दें, लेकिन ये शब्द जीवन की हर परीक्षा में आपकी मदद करेंगे। आज हम आचार्य चाणक्य के इसी विचार से एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज के परिदृश्य में आचार्य चाणक्य ने दो स्थितियों में निर्णय न लेने को कहा है।
‘अत्यधिक क्रोध और शोक के बीच कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए।’ आचार्य चाणक्य:
इस कथन में आचार्य चाणक्य ने लोगों को दो स्थितियों में निर्णय लेने से मना किया था। ऐसा इसलिए क्योंकि इन दोनों ही स्थितियों में निर्णय लेना आप पर भारी पड़ सकता है। ये दो स्थितियां हैं क्रोध और उदासी। इन दोनों मुद्दों के बारे में हम आपको एक-एक करके विस्तार से बताएंगे।
पहला क्रोध है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि क्रोध में कभी भी कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि क्रोध सबसे पहले मानव बुद्धि को काम करने से रोकता है। वह क्रोध से इतना कुचला जाता है कि उसकी सोचने और समझने की क्षमता पहले ही प्रभावित हो जाती है। अगर वह ऐसी स्थिति में फैसला करता है तो ज्यादातर उसके खिलाफ जाएंगे। इसलिए क्रोध में आकर किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से बचना चाहिए।
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दूसरा दु:ख है। जिस प्रकार क्रोध में व्यक्ति का मन काम करना बंद कर देता है, उसी प्रकार उदासी भी। मनुष्य दुःख से इतना अधिक अभिभूत है कि वह किसी भी चीज़ की गहराई को समझ नहीं पाता है। ऐसे में अगर आप कोई फैसला लेते हैं तो वह आपके खिलाफ जा सकता है। इसलिए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अत्यधिक क्रोध और शोक में कभी भी कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए।