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Mothers Day Special 9 Apr 2021 : Maa Banna Aasaan Nahi , Jaan Tak Pad Jati Hai Gawani

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माँ, एक ऐसा शब्द जिसमे हज़ारों लाखों भाव छुपे हुए हैं एक बच्चे के लिए उसकी माँ और एक माँ के लिए उसके बच्चे से ज्यादा जरुरी और कुछ भी नहीं होता। मदर्स डे के दिन हम जानेगे की एक माँ अपने बच्चे को जन्म देने से लेकर उसे पालने पोसने में कितनी तकलीफें सहन करती है पर उसके मुँह से एक बार भी उफ़ नहीं निकलती।

माँ को दिया भगवान का दर्जा

हज़ारों लाखो कवी गुरु सबने माँ को भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया है , माँ का आँचल सरे दुःख दर्द तकलीफ भू;आने के लिए काफी है उसकी छाँव में बैठकर हम सिर्फ सुकून का अहसास करते हैं। लेकिन हमें सुकून देने के लिए माँ क्या क्या सहती है आज हम ये जानेगे।

एक बच्चे को अपने गर्भ में पालना बेहद जटिल प्रक्रिया है और इसे एक माँ कितनी तकलीफें उठकर कर करती है इसे जानना बेहद जरुरी है। तो आइये कुछ साइंटिफिक फैक्ट्स पर नजर डालते हैं –

जब बच्चा माँ के गर्भ में पलता है तो माँ के शरीर के भीतरी अंग अपनी जगह से हैट जाते हैं जिस वजह से पेट और आंत दबने लगता जिससे न सिर्फ माँ का पाचन तंत्र बिगड़ता है बल्कि उसे सांस लेने में भी काफी दिक्कत होती है।

शुरुआत मे माँ को होती है काफी तकलीफ

गर्भ में पल रहे बच्चे को शुरुआती पोषण देने के लिए माँ अपने शरीर में 30 -50 % तक खून और प्लाज्मा बढ़ा लेती है जिससे उसके दिल को खून पंप करने के लिए करीब 50 % तक अधिक मेहनत करनी पड़ती है।

गर्भावस्था के समय जब माँ खाना खाती है तो माँ से पहले बच्चे को उसका पोषण मिलता और फिर बच्चे से बचा पोषण माँ को मिलता है जिस वजह से माँ को कमजोरी महसूस होती है इसलिए ऐसे समय में महिलाओं को अधिक पोषण लेने की जरुरत होती है।

महिलाओं की औसत त्वचा का आकार 17 स्क्वायर फ़ीट होता है जो की गर्भावस्था के वक़्त करीब 18 स्क्वायर फ़ीट से ज्यादा बढ़ जाता है और ज्यादातर महिलाओं के शरीर पर प्रेग्नेंसी के बाद इसके निशान रह जाते हैं।

याददाश्त पर भी पड़ता है असर

प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं की याददाश्त पर करीब 80 % तक असर पड़ता है , जो क़ि प्रेग्नेंसी के वक़्त सही से नींद ना आने के कारण होता है जिसे सही होने में प्रेग्नेंसी के बाद करीब 3 से 4 महीने का वक़्त लगता है।

गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए माँ रोजाना 10 – 15 % ऊर्जा खर्च करती है यह करीब 216 से 240 फ़ूड कैलोरी होती है जो क़ि खाने से मिलने वाली पूर्ण ऊर्जा के बराबर होती है।

बच्चे को जन्म देते वक़्त महिलाओं को हड्डी टूटने जैसा दर्द होता है या उससे भी कही 15 % तक ज्यादा होता है बावजूद इसके जब डॉक्टर दर्द काम करने का इंजेक्शन देते हैं तो महिलायें यही पूछती हैं क़ि इससे बच्चे को कोई खतरा तो नहीं ?

महिलायें जन्म से ही माँ बनने की तैयारी से आती हैं दरअसल महिलाओं की कोख में जन्म से ही अंडाणु होते हैं जबकि पुरुषों में स्पर्म जन्म से नहीं होता और यही अंडाणु आगे चलकर महिलाओं को प्रेग्नेंट होने में मदद करते हैं और इन्ही से पता चलता है की एक महिला कितने बच्चों को जन्म दे सकती है।

बच्चे को जन्म देने में हज़ारों महिलाओं की जान चली जाती है , विश्व में बच्चे को जन्म देते वक़्त या उसके कुछ समय बाद करीब 45000 महिलायें अपनी जान गावं देती हैं जिनमे सबसे ज्यादा संख्या भारतीय महिलाओं की होती है।

मई महीने के दूसरे रविवार को ही क्यों मनाते हैं मदर्स डे ? कहाँ से शुरू हुई ये परंपरा ?

मदर्स डे मनाने की शुरुआत सबसे पहले अमेरिका से हुई , दरअसल अमेरिका में रहने वाली जार्विस की माँ चाहती थी की मदर्स डे मनाया जाए जिसके बाद जार्विस ने माँ के निधन के बाद इसकी शुरुआत की। जिस दिन इसकी शुरुआत हुई उस दिन मई का दूसरा रविवार था जिसके बाद से ये पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा।

और अब हर साल मई म्हणे के दूसरे रविवार को माँ को समर्पित ये दिन पूरी दुनिया में मनाया जाता है। लोग हर रोज़ अपनी माँ का शुक्रिया ऐडा नहीं कर पाते इस दिन के बहाने ही उन्हें माँ को शुक्रिया कहने का मौका मिलता है , और अपना प्यार जताने का भी।

Written By : Shruti Dixit

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