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क्या है कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद , दोनों राज्यों के नेताओ ने बनाया राजनीतिक मुद्दा

भारत के दो राज्य कर्नाटक और महाराष्ट्र के नेता आपस में भिड़ जाते हैं। तीखी राजनीतिक बयान बाजी होती है। लोग भड़कते हैं और फिर हिंसा हो जाती है। जिसे रोकने के लिए दोनों ही राज्यों की पुलिस को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है। साल 2007 से यह सिलसिला चला आ रहा है। जिसकी शुरुआत कर्नाटक ने की थी। लेकिन इन दोनों राज्यों और इनके लोगों की भिडंत का इतिहास करीब 66 साल पुराना है। इसकी जड़ में करीब 100 वर्ग किमी का एक इलाका है, जिस पर कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों ही दावे करते हैं।

आखिर ये विवाद है क्या, क्यों इस इलाके के लिए दोनों ही राज्य एक दूसरे से भिड़ते रहते हैं। इन सबके बीच 27 दिसंबर को महाराष्ट्र विधानसभा के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया गया। इस प्रस्ताव में विवाद के समाधान के लिए कानून लड़ाई लड़ने का समर्थन किया गया है।

इससे पहले पिछले हफ्ते ही कर्नाटक विधानसभा में भी इसी तरह का प्रस्ताव पास हो चुका है। कर्नाटक विधानसभा द्वारा पास प्रस्ताव में राज्य के हितों की रक्षा करने का संकल्प लिया गया था। सर्वसम्मति से पारित किए गए प्रस्ताव में महाराष्ट्र द्वारा निर्मित सीमा विवाद की निंदा की गई थी।

आखिर दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद क्या है ? यह विवाद कितना पुराना है ? अब तक इस विवाद में क्या-क्या हो चुका है ? आइये जानते हैं………

दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद क्या है ?

यह सीमा विवाद कर्नाटक के बेलागवी (बेलगाम), उत्तर कन्नड़ा, बीदर और गुलबर्गा जिलों के 814 गांवों से जुड़ा है। इन गांवों में मराठी भाषी परिवार रहते हैं। 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत जब राज्यों की सीमा का निर्धारण हुआ तो ये गांव उस वक्त के मैसूर (वर्तमान कर्नाटक) राज्य का हिस्सा बन गए। महाराष्ट्र इन गांवों पर अपना दावा करता है।

विवाद कितना पुराना है ?

बॉम्बे प्रेसिडेंसी में कर्नाटक के विजयपुरा, बेलागवी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ा जिले आते थे। 1948 में बेलगाम म्युनिसिपालिटी ने जिले को महाराष्ट्र में शामिल करने की मांग की थी। लेकिन, स्टेट्स रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 1956 के तहत बॉम्बे प्रेसिडेंसी में शामिल रहे बेलगाम और उसकी 10 तालुका को मैसूर स्टेट (1973 में कर्नाटक नाम मिला) में शामिल किया गया।

दलील दी गई कि इन जगहों पर 50% से अधिक कन्नड़भाषी थे, पर विरोधी ऐसा नहीं मानते। उनका दावा है कि करीब 7,000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इन इलाकों में मराठी भाषी लोगों की बहुलता है ऐसे में ये इलाके महाराष्ट्र का हिस्सा हैं।

इस विवाद में क्या-क्या हो चुका है ?

22 मई, 1966 को सेनापति बापट और उनके साथियों ने मुख्यमंत्री आवास के बाहर भूख हड़ताल की। इसके बाद सीमा विवाद के इस मुद्दे को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने लाया गया। इसके बाद इंदिरा सरकार ने अक्टूबर 1966 में विवाद के निपटारे के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में महाजन आयोग का गठन किया था।

इस आयोग को महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल के बीच जारी सीमा विवाद के निपटारे के लिए बनाया गया था। इस आयोग ने कर्नाटक के 264 गांवों को महाराष्ट्र में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया था। इसके साथ ही बेलगाम और महाराष्ट्र के 247 गांवों को कर्नाटक में रखने की बात भी कही। महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया। 2004 में महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई।

महाजन आयोग की रिपोर्ट पर कर्नाटक का क्या रुख है ?

कर्नाटक विधानसभा पिछले हफ्ते पेश प्रस्ताव में कहा गया है कि ‘जब भाषाई आधार पर राज्यों का गठन किया गया था। उसी दिन सीमाएं भी निर्धारित कर दी गई थीं। जहां तक कर्नाटक का सवाल है। महाराष्ट्र के साथ उसका कोई सीमा विवाद नहीं है और जस्टिस महाजन समिति की सिफारिशें अंतिम हैं।

सुप्रीम कोर्ट तक गया मामला

अब सबसे ज्यादा दिक्कत महाराष्ट्र को ही है तो उसने विवाद को सुलझाने के लिए साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इस बात को 18 साल बीत गए हैं। तब से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में ही लंबित है। जहां सुनवाई के दौरान हर बार कर्नाटक के प्रतिनिधि गैर हाजिर रहते हैं और नतीजा ये होता है कि हमेशा ही इस मुद्दे पर तारीख पर तारीख पड़ती जाती है।

ठंड में क्यों बढ़ता है विवाद

कर्नाटक ने एक और भी काम किया है, जिसने इस विवाद को और हवा दे रखी है। वो है जाड़े के मौसम में विधानसभा के सत्र का बेलगाम में आयोजित होना। दरअसल कर्नाटक ने बेलगाम पर अपने दावे को और मजबूत करने के लिए साल 2007 में बेलगाम में विधानसभा भवन बनाने का फैसला किया। ताकि विधानसभा का शीतकालीन सत्र बेलगाम में आयोजित हो सके।

साल 2012 से कर्नाटक विधानसभा का शीतकालीन बेलगाम में ही आयोजित होता है। हर विधानसभा सत्र के दौरान महाराष्ट्र की ओर से इसका विरोध किया जाता है। जिसका नतीजा है कि हर साल ठंड के मौसम में महाराष्ट्र और कर्नाटक के नेताओं के साथ ही आम लोग भी इस मसले पर भिड़ जाते हैं और फिर इसकी तपिश दूसरे राज्यों के सीमावर्ती विवाद पर भी पड़ने लगती है।

मामला क्यों सुर्खियों में है ?

2004 से सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पेंडिंग है। तब से केंद्र ने महाजन आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अक्सर महाराष्ट्र के दावे वाले इलाकों के कर्नाटक ऑक्युपाइड महाराष्ट्र बताते रहे हैं। इस पर कर्नाटक में हिंसक प्रदर्शन भी हो चुके हैं। बेलगाम का मसला महाराष्ट्र की सभी पार्टियों के चुनावी एजेंडे में रहता है।

छह दशक से महाराष्ट्र विधानसभा और परिषद के संयुक्त सत्र में गवर्नर के अभिभाषण में सीमा विवाद का जिक्र होता है। दिसंबर की शुरुआत में दोनों राज्यों की सीमा पर कन्नड़ रक्षक वेदिका नाम के एक संगठन ने महाराष्ट्र से आने वाली ट्रेनों को नुकसान पहुंचाया। बेंगलुरु हाइवे से गुजरने वाली गाड़ियों के साथ ही ट्रेनों पर पथराव किया गया है और शीशे तोड़े गए। इसके बाद दोनों राज्यों की विधानसभाओं से इसे लेकर प्रस्ताव पारित किए गए।

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