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कोर्ट ने खारिज की ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग की मांग , हिंदू पक्ष को झटका

वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद में मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग जांच की मांग खारिज हो गई है। शुक्रवार को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने मामले पर सुनवाई की। अदालत ने कार्बन डेटिंग के साथ ही अन्य किसी भी वैज्ञानिक तरीके के परीक्षण की मांग खारिज कर दी है। अदालत के फैसले से हिंदू पक्ष को झटका लगा है। माना जा रहा है कि अब हिंदू पक्ष हाईकोर्ट जा सकता है। जिजा जज ने अपने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट ने 15 मई को कथित शिवलिंग को सुरक्षित रखने को कहा था।

कार्बन डेटिंग या किसी अन्य पद्धति से जांच से शिवलिंग को नुकसान हो सकता है। राडार पद्धति से भी जांच होती है तो नुकसान की आशंका है। जज ने लिखा कि अगर नुकसान होता है तो लोगों की धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुंच सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि एएसई जांच से मामले के न्यापूर्ण समाधान की संभावना भी नहीं दिखाई देती है।

उल्लेखनीय है कि शृंगारगौरी सहित अन्य विग्रहों के पूजा के अधिकार के वाद पर सुनवाई के दौरान हुए सर्वे में ज्ञानवापी मस्जिद के वुजूखाने में शिवलिंग जैसी आकृति मिली थी। उसकी कार्बन डेटिंग सहित अन्य वैज्ञानिक पद्धति से जांच कराने के लिए हिंदू पक्ष के पांच में से चार वादियों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन व विष्णु शंकर जैन ने प्रार्थना पत्र दिया था। एक वादी ने कार्बन डेटिंग की जगह किसी और जांच की मांग की थी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला

वाराणसी जिला अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जहां कथित शिवलिंग पाया गया है उसे सुरक्षित रखा जाए। ऐसे में अगर कार्बन डेटिंग के दौरान कथित शिवलिंग को क्षति पहुंचती है तो यह शीर्ष अदालत के आदेश का उल्लंघन होगा और आम जनता की धार्मिक भावनाओं को भी चोट पहुंच सकती है। जिस वक्त ज्ञानवापी मामले की सुनवाई चल रही थी उस वक्त दोनों पक्ष, उनके वकील, सरकारी वकील और कोर्ट कमिश्नर को मिलाकर 59 लोग कोर्ट में मौजूद थे।

अंजुमन इंतजामिया ने कोर्ट में कहा

इस मामले में अंजुमन की तरफ से विरोध करते हुए दलील में अधिवक्ता मुमताज अहमद और एखलाक अहमद ने कहा कि 16 मई को सर्वे के दौरान मिली आकृति के बाबत दी गई आपत्ति का निस्तारण नहीं किया गया और मुकदमा सिर्फ शृंगार गौरी के पूजा और दर्शन के लिए दाखिल किया गया है। 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मिली आकृति को सुरक्षित व संरक्षित करने का आदेश दिया है। वैज्ञानिक जांच में केमिकल के प्रयोग से आकृति का क्षरण सम्भव है कार्बन डेटिंग जीव व जन्तु की होती है पत्थर की नहीं हो सकती। क्योंकि पत्थर कार्बन को एडाप्ट नहीं कर सकता। कहा कि कार्बन डेटिंग वाद की मजबूती व साक्ष्य संकलित करने के लिए कराई जा रही है ऐसे में कार्बन डेटिंग का आवेदन खारिज होने योग्य है।

प्रति उत्तर में हिदू पक्ष ने कहा की बरामद आकृति की जाँच जरुरी

प्रतिउत्तर में हिदू पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन,विष्णु जैन,सुभाष नन्दन चतुर्वेदी व सुधीर त्रिपाठी ने दलील में कहा कि वाद में दृश्य व अदृश्य देवता की बात कही गई है सर्वे के दौरान वजू स्थल स्थित हौज से पानी हटाने पर अदृश्य आकृति दृश्य रूप में दिखी ऐसे में यह पार्ट ऑफ शूट है यानि दावे का हिस्सा है,बरामद आकृति शिवलिंग है या फव्वारा यह वैज्ञानिक जांच से ही स्पष्ट होगा। ऐसे में आकृति को बिना नुकसान पहुंचाए ,हिदुओं की आस्था को चोट पहुंचाए बगैर वैज्ञानिक जांच भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के विशेषज्ञ टीम से कराई जाए ताकि यह तय हो सके कि आकृति शिवलिंग है या फव्वारा।

हाईकोर्ट में अपील करेगा हिंदू पक्ष

कोर्ट के फैसले पर हिंदू पक्ष के वकील मदन मोहन यादव ने कहा-हमारी कार्बन डेटिंग की मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि शिवलिंग के साथ कोई छेड़छाड़ ना हो, अभी इसकी आवश्यकता नहीं है। हम हाईकोर्ट में भी अपनी बात रखेंगे क्योंकि विज्ञान की कसौटी पर जीवन जिया जा सकता है।

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