जीवन तंत्र डेस्क : कहानी – स्वामी रामतीर्थ के आश्रम में एक अंग्रेज आया। उन्होंने स्वामी जी से मिलने के लिए समय निकाला। स्वामी रामतीर्थ की बातचीत की अवधारणा अनूठी थी। वह ब्रिटिश स्वामीजी के बारे में जानते थे।
जब ब्रिटिश आदमी और उसके पति रामतीर्थ जी के बीच बातचीत शुरू हुई, तो स्वामी जी ने पूछा, ‘आपके यहाँ आने का क्या उद्देश्य है?’
अंग्रेज ने कहा, ‘मैं आपके पास किसी अमेरिकी विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में आया हूं। जब भी आप अमेरिका आते हैं, हम सब आपकी चर्चा सुनते हैं। हम आपके विचारों और आपके ज्ञान से बहुत प्रभावित हैं। हमने फैसला किया है कि हम आपको मानद उपाधि देना चाहते हैं। आप इसे स्वीकार करें। ‘
स्वामी रामतीर्थ ने हमेशा उनकी स्तुति सुनी और उसे दो भागों में काट दिया। शरीर और आत्मा की स्तुति करो। मैं राम कहता था, इस शरीर की स्तुति हो रही है। कभी-कभी वह कहते थे कि मेरी इतनी तारीफ मत करो, नहीं तो राम बर्बाद हो जाएंगे। इस तरह उन्होंने प्रशंसा से खुद को अलग कर लिया।
मानद उपाधि सुनकर स्वामीजी मुस्कुराए और बोले, ‘देखो, मैं पहले से ही दो घोटालों से पीड़ित हूं।’
यह सुनकर अंग्रेज समेत वहां बैठे सभी लोग हैरान रह गए। सबने दो कलंक कहे और वो भी आप पर?
स्वामीजी ने कहा, ‘हां, मेरे नाम के आगे एक मेरा पति है और दूसरा एम.ए. कभी-कभी मेरे नाम के पीछे एम.ए. लिखा हुआ है। अब ये दो डिग्री मेरे लिए पहले से ही बहुत भारी हैं। इन दो उपाधियों के साथ-साथ उपाधि, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि, प्रसिद्धि, ये सभी हमारे गौरव को बढ़ाते हैं। मुझे लगता है कि अगर हम अनावश्यक उपाधियाँ और प्रशंसा जोड़ दें तो हम अभिमानी हो सकते हैं, अहंकार हमारी खोज के रास्ते में आ सकता है। धन्यवाद राम। तुम आओ। ‘
आज का जीवन मंत्र : बड़ों का कभी मजाक न बनाएं ,नहीं तो प्रकृति को सजा देगी
सीख – यदि आपको प्रशंसा या कोई बड़ी सफलता मिले तो उसे अहंकार से अलग कर लेना चाहिए। अहंकार से अपनी रक्षा करनी चाहिए। प्रसिद्धि या प्रशंसा प्राप्त करना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन हमें गर्व नहीं करना चाहिए।