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Mohan Bhagwat Ke Bayan Par Sangh Me Aapas Me Bhide Log , Apne Bayanbaaji Me Khud Hi Phase Bhagwat

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संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में मुसलमानों के साथ हिंदुओं के रिश्ते पर एक बयान दिया था जिस पर वैचारिक गर्माहट फैलने लगी है इतना ही नहीं संघ के लोगों ने ही इसका विरोध करना शुरू कर दिया है जिस पर उन लोगों का कहना है कि गुरुजी गोलवलकर के जमाने में हिंदुत्व को लेकर संघ के विचारधारा अलग रही थी।

दरअसल संघ प्रमुख द्वारा गाजियाबाद में दिया गया बयान इस विवाद की जड़ बना हुआ है जिसमें संघ प्रमुख ने कहा था कि, “यदि कोई हिंदू कहता है कि मुसलमान यहां नहीं रह सकता है तो वह हिंदू नहीं हैl गाय एक पवित्र जानवर है लेकिन जो इसके नाम पर दूसरों को मार रहे हैं वो हिंदुत्व के खिलाफ हैं। ऐसे मामलों में कानून को अपना काम करना चाहिए।” संघ प्रमुख ने अपने बयान में यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म का हो लेकिन सभी भारतीयों का डीएनए एक है।

संघ के लोग ही कर रहे भागवत का विरोध

संघ के अंदर करीब 50 साल बाद ऐसे हालात बनते दिख रहे हैं जिसमें संघ के ही लोग संघ प्रमुख के खिलाफ आवाज उठाते नजर आ रहे हैं। खबरों के अनुसार संघ प्रमुख के खिलाफ ज्यादातर विरोध असम नागपुर और पश्चिम बंगाल से देखने को मिल रहा है संघ ने असम और पश्चिम बंगाल के चुनावों में काफी काम किया था

इतना ही नहीं असम के मुस्लिम बहुल इलाकों में चुनाव के दौरान हर बूथ पर 20-20 लोगों के कमिटी भी बनाई गई थी लेकिन हर बूथ पर 5 से ज्यादा वोट नहीं मिल सके वही तमाम कोशिशों के बावजूद बंगाल में भी पार्टी अपनी जीत दर्ज नहीं करा सकी और ममता बनर्जी ने एक बार फिर से जीत अपने नाम की।

संघ प्रमुख ने कहा बिना मुसलमानों के अधूरा है हिंदुत्व

संघ प्रमुख का मुसलमानों को लेकर यह पहला बयान नहीं है इससे करीब 3 साल पहले 2018 में भी संघ प्रमुख ने दिल्ली में 3 दिनों की व्याख्यान माला में कहा था कि बिना मुसलमानों की हिंदुत्व अधूरा है साथ ही हिंदुस्तान में रहने वाला हर व्यक्ति हिंदुस्तानी हैं और अगर किसी भी व्यक्ति को हिंदुस्तानी शब्द से आपत्ति है तो वह भारतीय कह सकता है क्योंकि इसमें कोई भी दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

संघ प्रमुख के इस बयान के बाद से हालांकि कोई विवाद तो नहीं हुआ और ना ही किसी ने अपनी नाराजगी जाहिर की लेकिन संघ प्रमुख के इन विचारों को पूर्णतया स्वीकार भी नहीं किया गया।

RSS में मुसलमानों को लेकर हमेशा मतभेद में रहे संघ विचारक दिलीप देवधर का कहना है कि संघ प्रमुख का बयान डॉ हेडगेवार और देवरस के विचार को आगे बढ़ाने वाला है इसलिए हमें विश्वास है कि इसमें कामयाबी जरूर मिलेगी साथ ही देवधर ने यह भी कहा कि गुरुजी गोलवलकर की सोच कुछ अलग थी जिसमें अगर संघ का इतिहास देखा जाए तो हिंदुत्व को लेकर R.S.s. में हमेशा ही मतभेद बने रहे हैं।S

संघ विचारक ने कहां थी हिंदुस्तान में रहने वाला हर एक व्यक्ति हिंदू है जैसे कि जर्मनी में जर्मन होता है हालांकि यहां रहने वाला हर व्यक्ति हिंदू शब्द से आसक्ति तो नहीं रखता है लेकिन अगर देखा जाए तो 10000 साल पुरानी हिंदू परंपरा और विचार के साथ ही चलता है।

गोलवलकर का विचार संघ प्रमुख के बयान से बिल्कुल अलग

संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरुजी गोलवलकर ने लिखा है कि भारत का 12 साल पुराना इतिहास धार्मिक रहा है जिसमें हिंदुओं को खत्म करने की कोशिश की गई है। गोलवलकर का मानना था कि जब से मुसलमानों इस धरती पर कदम रखा है उनका सिर्फ और सिर्फ यही उद्देश्य है कि लोगों का धर्मांतरण किया जाए और उन्हें अपना गुलाम बना कर रखा जाए हालांकि संघ ने बंच ऑफ थॉट्स में गोलवलकर के इन विचारों को खारिज कर दिया था।

देवरस को अलग और नया RSS बनाने की मिली थी सलाह

बालासाहब देवरस से प्रतिनिधि सभा से पहले दिल्ली में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछा गया था कि क्या संघ मुसलमानों के लिए अपने दरवाजे खोलने जा रहा है जिस पर देवरस ने जवाब देते हुए कहा था कि सैद्धांतिक रूप से तो हमें यह स्वीकार है कि उपासना पद्धति अलग होने के बावजूद भी मुस्लिम राष्ट्रीय जीवन में समरस हो सकते हैं और उन्हें होना भी चाहिए।

देवरस के इस बयान पर महाराष्ट्र के आर एस एस प्रमुख ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए उन्हें एक चिट्ठी लिखी थी जिनमें उन्होंने कहा कि अगर आपको आर एस एस के सरसंघचालक आसन दिया गया है जिस पर कभी डॉक्टर हेडगेवार बैठे थे तो कृपया उस संघ को चलाएं और उसे आगे बढ़ाने का रास्ता बयान बनाएं उसे बदलने की कोशिश मत करिए

और अगर आपको लगता है कि बदलाव जरूरी है तो फिर आपको एक नया R.S.S. बना लेना चाहिए आर एस एस प्रमुख ने चिट्ठी में यह भी कहा कि देवरस जी को हिंदुओं को संगठित करने वाले आर एस एस को छोड़ देना चाहिए और अगर r.s.s. में कोई बदलाव होता है तो मेरा संघ से कोई भी रिश्ता नहीं रहेगा।

संघ के एकजुटता की भावना

संघ प्रमुख केएस सुदर्शन के नेतृत्व में साल 2002 में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की शुरुआत की गई जिसके मार्ग निर्देशक इंद्रेश कुमार हैं लेकिन आर एस एस खुद को इससे दूर रखता है जहां सिर्फ मुस्लिमों को साथ लेने की कोशिश की जा रही है।

साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव जीतने के बाद बीजेपी संसदीय दल की पहली बैठक की जिसमें प्रधानमंत्री ने कहा कि सबका साथ सबका विकास के साथ ही सबका विश्वास जीतना भी उतना ही जरूरी है हालांकि यह बात अलग है कि बीजेपी सरकार के दौरान अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व काफी कम है जिस पर संघ विरोधियों का कहना है कि मुसलमानों पर आर एस एस की बात हाथी के दांत जैसी है यानी कि खाने के कुछ और और दिखाने के कुछ और जिसका अर्थ है कि संग कहता कुछ और है और करता कुछ और।

Written By : Shruti Dixit

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