अदालतों में बहस को लेकर कई तरह के मामले आते हैं । कई बार वकीलों के बीच तंज होता है तो कई बार तीखी बहस होती है। कई बार कोर्ट के अंदर हाथापाई को लेकर भी खबरें सामने आई हैं लेकिन कोलकाता की एक कोर्ट में अजीब मामला सामने आया है। यहां वकीलों की दलीलों से जज बीमार पड़ गए। उन्होंने इसे लेकर अपने कोर्ट स्थगित कर दी। हैरानी वाली बात यह है कि वकीलों की अप्रासंगिक तर्कों का हवाला देने वाला यह नोटिस कोर्ट की वेबसाइट पर भी अपलोड कर दिया गया। विवाद के बाद अब इस नोटिस को न सिर्फ हटाया गया बल्कि इसका शुद्धिपत्र भी जारी किया गया।
मामला ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) से जुड़ा है। संशोधित आदेश में केवल यह कहा गया है कि पीठासीन अधिकारी को मामलों को स्थगित करना पड़ा क्योंकि वह (जज) अस्वस्थ महसूस कर रहे थे। सूत्रों ने बताया कि मंगलवार को ट्राइब्यूनल सरफेसी एक्ट 2002 के तहत एक मामले की सुनवाई कर रहा था, जहां कर्जदार तय अवधि के भीतर गिरवी रखे हुए बैंक ऋण को चुकाने में विफल रहा था।
कमरे के बाहर निकल गए जज
सुनवाई पहले ही एक घंटे से अधिक तक खिंच चुकी थी और वह सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाने के लिए वकील की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। पीठासीन अधिकारी कथित तौर पर अस्वस्थ हो गए और तर्क को रोकते हुए कमरे से बाहर चले गए। जिससे दिन के लिए सूचीबद्ध अन्य मामलों को स्थगित कर दिया गया।
भ्रम तब पैदा हुआ जब रजिस्ट्रार-इन-चार्ज, चित्तेश कुमार ने वेबसाइट पर एक नोटिस अपलोड किया, जिसमें लिखा था: ‘एलडी काउंसल के किए गए अप्रासंगिक तर्क के कारण, एलडी पीठासीन अधिकारी अस्वस्थ महसूस कर रहे थे। इसलिए, एलडी पीठासीन अधिकारी के समक्ष आज सूचीबद्ध शेष मामले को स्थगित किया जाता है।’
बाद में किया गया संशोधन
हालांकि एक दिन बाद इसका शुद्धिपत्र जारी किया गया और वेबसाइट पर अपलोड किया गया, जिसमें बताया गया कि पहले का नोटिस वापस ले लिया गया था। नए नोटिस में अप्रासंगिक तर्क भाग को बाहर कर दिया गया। परिस्थितियों से वाकिफ वकीलों ने कहा कि पीठासीन अधिकारी की तबीयत बहुत खराब थी। डीआरटी बार असोसिएशन ने एक ट्राइब्यूनल अधिकारी पर भ्रम की स्थिति का आरोप लगाया अधिकारी को हाल ही में ट्राइब्यूनल में शामिल किया गया और उन्हें नोटिस का उचित ज्ञान नहीं था।